प्यार
प्यार
कैसा रूप सलोना है
कैसा है ये सम्मोहन
प्रीत ये कैसी गहरी है
मिलें नहीं सदियों से
जुदा भी नहीं हो पाएं
रही दूरियां मीलों की
सदियों के रहे फासले
टूटा नहीं नेह का नाता
प्रीत हुआ ना आधा
कान्हा बसे रहें सांसों में
हृदय में बसी थी राधा
बंधे रहें बिन बंधन के
एक डोर में कृष्णा
ओझल होकर रहें नैनों में
अद्भुत है यह नाता
कैसा रूप सलोना है
कैसा प्यार तुम्हारा ??