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Chandresh Kumar Chhatlani

Romance

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Chandresh Kumar Chhatlani

Romance

सोचता ही रहा

सोचता ही रहा

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मैं न लिख पाया उसके बारे में कभी

सोचता ही रहा कि आज कुछ लिखूंगा

उसको निहारता था मैं कोरे केनवास में

तो कभी पढता था मैं उस

बिना शब्दों की कविता को


वो तो बिना परों के

छू लेती थी आसमान

तो कभी बन जातीएक अदृश्य मूर्ती

मैं वादियों में चिल्लाता था उसका नाम

तो प्रतिध्वनि में आता हर बार

स्वरहीन संगीत


मैं जब भी खामोश होता

वो गुनगुनाती थी कानों में

और मैं जब कुछ कहता

तो वो बन जाती थी

छितराता हुआ बादल


मैं फिर भी ढूँढता हूँ

उस अदृश्य मूरत को

उस अनकहे संगीत को

और उस बिना बरसे बादल को


तुम्हें मिले तो रख लेना

अपने ही पास में

वो मेरी अमानत नहीं है

क्योंकिआत्मा नहीं होती

हिस्सा दुनिया का।


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