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कशिश

कशिश

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कैसे भुलायें,

जब हमारी कहानी बिगड़ी थी,

दुनिया को पता भी न चला,

बनती हुई कहानी,

अधूरी प्रेमकहानी बन रह गई !


वो बेचैन दिन,

वो सुलगती शामें,

वो अधजगी रातें तेरी याद में !


वो गुलज़ार के लफ्ज़ों पे मरना,

वो जगजीत की गज़लों में घुलना,

कॉपी किताबों में हर कहीं तुझे देखना !


बरसाती बादलों को खिड़की से देख,

वो कॉफी की भाँप में,

तेरा धुँधला चेहरा ढूँढना !


वो रुहानी बातें,

वो हँसते आँखों की नमी,

वो कशिश तेरी गली की !


वो तड़प, तुझे एक झलक देखने की,

कितनी खुशी और सुकून,

बस तेरी एक मुस्कुराहट पाते ही !


वो मुश्किलें पहाड़ों सी,

सपने औकात से बढ़कर आसमान से,

मुठ्ठी भर पैसे और वो तंग हालात !


वो घंटों का इंतज़ार,

शायद हो तेरा दीदार,

पाया कुछ नहीं पर मज़ा बड़ा था !


अब बरसों बाद, सबकुछ सही है,

पैसों की तो कोई कमी नहीं है,

पर नादान दिल को चैन नहीं है !


दुनिया की नज़र में कामयाबी जमीं है,

पर मेरे लिये तो ज़िंदगी थमी है,

कहीं तो फिर भी कुछ कमी है !


क्या करें ? दिल नहीं मानता,

कम्बख्त जो बात तुझमें है,

वो किसी में नहीं है !


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