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Abhishek Singh

Romance

5.0  

Abhishek Singh

Romance

सोज़-ए-इंतज़ार

सोज़-ए-इंतज़ार

1 min
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एक सदा का तलबगार हुआ जाता है 

इश्क़ हमे, उससे ही लगातार हुआ जाता है 


यहाँ रंग सा उड़ने लगा है मेरे चेहरे का 

वहाँ मेरा रक़ीब रंगदार हुआ जाता है 


जाने उसने क्या किया मेरे दिल के साथ 

ये दिन पर दिन बेकार हुआ जाता है 


अभी नौबत तो नही आई बाज़ार में बिकने की 

मगर कोई हमारा ख़रीददार हुआ जाता है 


उसे इसका अंदाजा भी नही है कि 

वो मेरा अशहार हुआ जाता है 


मेरी सारी दलीलें ख़ारिज़ ही होती रही 

उनका तर्ज-ए-सुखन असरदार हुआ जाता है 


बहुत चाहा कि उसको भूला दूं मगर 

वो मेरे जेहन में किरायेदार हुआ जाता है 


मयखानों का मुंह देखने की अभी आदत नहीं

उन निगाहें-ए-मस्त से हमें ख़ुमार हुआ जाता है 


अब इंताजर की सोज़ हम ख़ुद ही बुझाने लगे 

अब कोई और भी हमारे लिए बेकरार हुआ जाता है 



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