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Abhishek Singh

Others

4.0  

Abhishek Singh

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हर्फ़ों का साथ

हर्फ़ों का साथ

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ये ख़ुशबू किस तरफ़ से आती जा रही है 

लगता है वो मुझसे और दूर जाती जा रही है 


हुनर ढूंढ के वजूद पुछते रहते हो अपना 

ये ज़िन्दगी यूं ही राएगाँ गुज़रती जा रही है 


अब तक कुछ न आया हाथ मात के शिवा

हर तरफ़ से सिर्फ़ बाजियां हारी जा रही है 


जन्म लेकर जिस इंसान ने पहले चलना सीखा

फ़िर उम्र भर पाँव की बेड़ियाँ खींची जा रही है


अब ये घर खाली किया जा रहा है 

सो दीवारों से तस्वीरें उतारी जा रही है 


हर्फों का साथ है तो जरा आराम है हमें

वरना कहते ये ज़िन्दगी अधूरी जा रही है 


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