जंजीर
जंजीर
यही तो पड़े थे
देखे थे
तेरे वो पद-चिन्ह
जो तू सहस्त्र बार
रौंद गया था शरीर
पारा-पारा लूटकर
छीन लिया था हर आशीष
अधमरी छाया को
कर अनाथ, भावहीन
पहना गया तू मुझे 'जंजीर'...!
यही तो पड़े थे
देखे थे
तेरे वो पद-चिन्ह
जो तू सहस्त्र बार
रौंद गया था शरीर
पारा-पारा लूटकर
छीन लिया था हर आशीष
अधमरी छाया को
कर अनाथ, भावहीन
पहना गया तू मुझे 'जंजीर'...!