स्वप्न लोक
स्वप्न लोक
यह हक़ीक़त है या सपना मेरा,
इतनी रौशनी से भरा सवेरा।
बिस्तर सहित उड़ आयी हूँ मैं,
मानो आसमान में घर हो मेरा।
यहाँ किसी बात की फ़िक्र नहीं
सिर्फ़ आराम है, काम नहीं।
इतना सुकून तो धरती पर,
कभी मुझको मिला नहीं।
लगता है मेरे अंदर भी,
परियों सी शक्ति समा गई।
बिना क़दम चले ही मैं तो,
सबसे मिलकर आ गई।