होली उत्सव
होली उत्सव
पूर्णिमा की चाँदनी में, हल्ला फिर होली का है।
क्षितिज से उतर के रंग बरसाने, मिलन राधा-कृष्ण का है।।
भारत तक अब नहीं सीमित, यह पर्व समस्त विश्व का है।
गुजिया, बुँदिया, पुए-पकवान, माहौल हर्षोल्लास का है।।
सदियाँ बीती, जली थी होलिका, अब भी हर वर्ष जलती है।
हिरण्यकश्यप की बहन खुद को, अमर समझ कर छलती है।।
नहीं मरता है इंसान कोई, जो भक्त प्रह्लाद सा होता है।
नहीं बचता है दुष्ट कोई, जो गुरुर हिरण्यकश्यप सा होता है।।
पापियों के अत्याचार के दिन पुरे जब होते हैं।
दीवार भेद उन्हें ख़त्म करने, नरसिंघ प्रकट तब होते हैं।।