घर
घर
घर तो वो होता है,
जिसमें मॉं होती है।
मॉं तो वो होती है,
जो आँचल की छॉंव देती है।।
भूख लगने से पहले,
भोजन परोस देती है।।
बिना कहे ही हमारा दुख,
वो समझ लेती है।।
घर तो वो होता है,
जिसमें मॉं होती है।
मॉं तो वो होती है,
जो आँचल की छॉंव देती है।।
घर तो पिता से होता है,
जो प्यार नहीं जतलाता है।
बिना माँगे सारी माँगे,
पूरी करते जाता है।।
उनके भय में ही सारा,
प्यार छुपा होता है।
घर तो पिता से होता है,
जो प्यार नहीं जतलाता है।।
हमारे ज़ुकाम में भी वो,
रातों को जागा करता है।
हमारे दुख में छुप छुप कर,
वो भी रोया करता है।।
घर तो पिता से होता है,
जो प्यार नहीं जतलाता है।।
मॉं-पिता दोनों में ही,
संसार छिपा होता है।
घर तो वो होता है,
जिसमें मॉं होती है।
घर तो पिता से होता है,
जो प्यार नहीं जतलाता है।।