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Dr Shikha Tejswi ‘dhwani’

Inspirational Others

4.3  

Dr Shikha Tejswi ‘dhwani’

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दशरथ-फाल्गुनी

दशरथ-फाल्गुनी

2 mins
92


मुफ़लिस थे, मजबूर थे,

मजदूरी करके जीते थेl

एक दूजे के साथ खुश थे,

प्रेम बहुत वो करते थेll


ऊंची पहाड़ी चढ़कर दशरथ,

लकड़ियाँ काटा करते थे l

धुप में तपकर फाल्गुनी तब,

भोजन लाया करते थी ll


दोनों बैठ पहाड़ी पर जब,

रोटी-प्याज़ खाते थे l

खुद अपनी जोड़ी को देख ,

वह फूले नहीं समाते थे ll


इनका प्रेम पनपे देखकर,

पर्वत को भी ईर्ष्या हुई l

इन्हें अलग करने की खातिर,

हत्या की साज़िश रची ll


एक दिन जब बड़े जातां से,

रोटी संग बनाया साग l

बड़े शौक से जल्दी जल्दी,

फाल्गुनी चढ़ने लगी पहाड़ ll


साज़िश को अंजाम देने,

ताक में बैठा पर्वत था l

फिसला पैर लुढ़क गयी वो,

सामने अवाक दशरथ था ll


घायल थी वो, लाचार थे दशरथ,

जीत गया वो घमंडी था पर्वतl

प्राण प्रियसी को ले गया वो काल,

भागते रह गए, नहीं पहुंचे अस्पताल ll


उसी पल ये तय किया,

घमंड चूर कर देने का l

छेनी हथौड़ी से पर्वत का,

सीना चीर देने का ll


अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता होगा l

पर अकेला शख्स पहाड़ ज़रूर तोड़ सकता है ll 


इसी निश्चय से बाईस वर्ष तक,

पत्थर तोड़ते रह गए l

जवानी की देहलीज़ पार कर,

वृद्ध होते चले गए ll


अंततोगत्वा पर्वत का भी,

गर्दन शर्म से झुक गया l

मांझी क सामने हाथ जोड़ वो,

क्षमा याचना करने लगा ll 


वचन दिया पर्वत ने,

अब कोई यहाँ न फिसलेगा l

अस्पताल न पहुँच पाने पर,

कोई जान न गँवाएगा ll


"इश्क़ तो सभी करते हैं ,पर कहाँ सब रांझे बनते हैं l

इक्के-दुक्के ही बिरला कभी दशरथ मांझी बनते हैं ll"


"बहुत हुआ ताजमहल का मिसाल क्यों देते हैं?

सच्चे प्रेम की परिभाषा गेहलौर के रस्ते देते हैं ll"



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