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Pranita Meshram

Abstract Drama Others

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Pranita Meshram

Abstract Drama Others

"मैं खड़ी हूं बाजार में "

"मैं खड़ी हूं बाजार में "

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मैं खड़ी हूं बाजार में खुद को तौलने,

कभी रिश्तों में, कभी मर्यादाओं में,

कभी तेरे प्यार की आकांक्षाओं में ।


कि तुम यहां मेरे रंग रूप को देखते हो।

क्या मोल रह गया है मेरे

और कौड़ियों के भावों में।

कभी बदचलन तो कभी बाँझ पुकारा जाता है,

यही इतिहास युगों युगों से चला आता है।

मैं खड़ी हूं बाजार में खुद को तौलने….


कभी जुएँ में हारा जाता है मुझे,

कभी दहेज की आग में तो कभी,

तेरे इश्क के तेजाब में झोंकी जाती हूं मैं।

और फिर अबला कहकर समाज की इज्जत

बचाने के लिए रोकी जाती हूं मैं।

मैं खड़ी हूं बाजार में खुद को तौलने….


मैं खड़ी हूं बाजार में खुद को तौलने,

कभी रिश्तों में कभी मर्यादाओं में,

कभी तेरे प्यार की आकांक्षाओं में ।


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