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Pranita Meshram

Abstract Inspirational

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Pranita Meshram

Abstract Inspirational

"मैंने जज़्बात बिखरते देखे हैं"

"मैंने जज़्बात बिखरते देखे हैं"

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मैंने जज़्बात बिखरते देखे हैं,

चंद रुपयों के लालच में।

मैंने ख्वाब बिखरते देखे हैं,

इन अमीरों की अदालत में।


मैंने रुह सिमटते देखा है,

किसी की हैवानियत आंखों में। 

मैंने जिस्म सिमटते देखा है,

किसी इंसानी जानवर की बाहों में।


मैंने गुड़ियों को सजा हुआ देखा है, 

किसी के हवस की भूख मिटाने के लिए।

मैंने महफिल सजते देखा है,

जिस्म के टुकड़े को नोच खाने के लिए।

 

मैंने लोगों की भीड़ लगते देखी है, 

किसीकी मजबूरी का तमाशा बनाने के लिए। 

मैंने एक लड़की को आग में जलते देखा है,

महज़ घर की इज्जत बचाने के लिए।


मैंने जज़्बात बिखरते देखे हैं,

चंद रुपयों के लालच में।

मैंने ख्वाब बिखरते देखे हैं,

इन अमीरों की अदालत में।


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