वो खुश थी...
वो खुश थी...
आज वो खुश थी
अपने ही व्यक्तित्व को जान
वो खुश थी ...
कभी सोचा था
कुछ करने का
सपने भी तो क्या खूब बड़े थे
आज छोटी सी ख्वाहिश के पूर्ण
होने की कहानी सुन
वो खुश थी
रास्ते पत्थर से भरे
रातें नयनों को भीगे
अपनी पहचान की खोज में
वो रुकी नहीं थी
वो चलती चली थी
आज अपनी मेहनत की
उधारी पा
जिंदगी को फिर से
जिंदगी से मिला ...
वो खुश थी
आप निंदिया भी सुकून
का राग सुना रहीं थी
और रातें फूलों सा
मुस्का रही थी
क्यूँकी आज़ अर्से बाद
वो पगली
खुश थी