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अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति

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आजाद कहां है

बंद है तहखानो में 

जकड़ी हुई है जंजीरों में 

पैरों में बेड़ियाँ हैं

सिल दिये गये हैं होठ। 


डाल दिए गए हैं जुबान पर ताले

आवाज आए तो आए कहां से 

कौन बोलेगा 

तुम बोलोगे 

या तुम बोलोगे 

या फिर तुम बोलोगे।


बाबू, 

बोलोगे तो पहचान लिए जाओगे 

और चिपका दिया जाएगा माथे पर 

लेवल

फिर चिल्लाते भी रहोगे 

तब भी नहीं सुने जाओगे 

मतलब नहीं रह जाएगा तुम्हारे शब्दों का।

 

हुकूमतें तब भी बहरी थीं 

हुकूमतें अब भी बहरी हैं

सत्ता सिर्फ बोलती है 

सुनना और सफाई देना

सत्ता की प्रकृति नहीं है। 


तुमको अगर इतना ही शौक है

बोलने का बाबू, 

तो सियासतदान हो जाओ

फिर खूब बोलना 

खूब सुने जाओगे

वाह वाही पाओगे

पर मतलब तुम्हारे बोलने का तब भी नहीं होगा,


क्योंकि

आम आदमी 

सुनता है सबकी 

पर.....।


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