मोहब्बत करना चाहता हूँ...
मोहब्बत करना चाहता हूँ...
हर एक बात को निगाहों से अयाँ करने के अंदाज़ को
तेरी ये कातिल अदा और
बेसब्र ज़ुल्फो को महोब्बत करना चाहता हु।
रोये मेरे गम-ए-हस्ति में और करे मेरे हिज्र पे हिज्र
उसे महोब्बत करना चाहता हु।
दोषो पे मेरे जो सलीब दुसरो पे रखे उसे
महोब्बत करना चाहता हु।
हया न करे और
अयाँ करे यकलखत शबाब जिसका हो
पुरनोर और हो तनवीर हर अदा की उसे
महोब्बत करना चाहता हु।
मकता
जुज़मर्ग जिसके लिए हो लाज़मी "नीरव" उसे
मुसलसल महोब्बत करना चाहता हु।
