मधुमास
मधुमास
मुझे अपने स्पर्श का एहसास दे दो
अतृप्त अधरों को अपनी प्यास दे दो
नि:स्वार्थ नहीं है मेरी प्रीत तुम्हारे लिए
जो मांगा नहीं कभी तुमसे वो स्वार्थ दे दो
कोई मतलब नहीं मुझे तुम्हारे कल से
जिसमें तुम ही तुम हो वो आज दे दो
नज़रों की बेकरारी कैसे बतलाऊं तुम्हें
बस एक बार इन्हें इनकी तलाश दे दो
मत पूछना मेरे सपनों के बारे में कुछ
अपने घर के आंगन में इन्हें पनाह दे दो
ख़ामोश ना रहना जमाने के सवालों पर
तनहाई में चाहे नज़रों से जवाब दे दो
ज़मीं हूं मैं सब कुछ सहन कर लूंगी
मुझे मेरे हिस्से का आकाश दे दो
तुम्हें तो मिल गई हर मोड़ पर बहारें
मुझे पतझड़ की सूनी सांझ दे दो
धरती और गगन सा है अपना मिलन
जानती हूं फिर भी एक आस दे दो
विरह में ही गारत हुए हैं बरसों मेरे
अब तो वो खिलता हुआ मधुमास दे दो।
अब तो वो खिलता हुआ मधुमास दे दो।।