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Saket Shubham

Drama

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Saket Shubham

Drama

चिकित्सा महाविद्यालय

चिकित्सा महाविद्यालय

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कहूँ क्या, रहूँ क्या,

जीऊं क्या मरूँ क्या

ये अल्फ़ाज़ क्या,

ये दौर क्या,

क्या ज़िंदगी,

मौत क्या


जी रहे जब खौफ में इंसान क्या ख़ुदा भी

सदाक़त ये आज की,

बिन डरे कहूँ क्या

मर्ज़ क्या, मरीज़ क्या

दवा क्या

ये दर्द क्या


वो पिट रहे,

सह रहे

आज जुर्म भी ये ज़ख्म भी

ये भी रहे नहीं तो फिर

ये इलाज़ क्या,

ये मर्ज़

दवा क्या

ये दर्द क्या


हुआ क्या नहीं

हर्फ़ भी बचा नही

जिसने बचाया कल तुमको था,

आज वो बचा नहीं

देखो ज़रा गौर से हुआ क्या

उस जिस्म का,

फिर मार क्या और हाथ क्या

सर क्या, पैर क्या !!


चूमा भी, लिया निवाला भी,

हँसी भी, खुशी भी

होठ थे जो उसके भी जो अब बचे नहीं

चंद रोज़ जिसने जोड़ दिये,

दी नई ये ज़िंदगी

मार दिया गर उसको भी,

फिर

बेजान क्या,

शैतान क्या

क्या हैवान, इंसान क्या !!!


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