खुद अक्षर बन जाता हूँ
खुद अक्षर बन जाता हूँ
जब मैं खुद को
क़िताबों में पाता हूँ
खुद अक्षर बन जाता हूँ।
सन्यासी सी धूनी रमाये
वहीं ध्यान में खो जाता हूँ
पीर पैगम्बर का साया
ईश्वर का निवास
साथ-साथ पाता हूँ।
जब मैं खुद को
किताबों में पाता हूँ
खुद अक्षर बन जाता हूँ।
काबा काशी की पवित्रता
गीता कुरान बाइबिल
यीशु के उपदेश
सब समान पाता हूँ।
जब में खुद को
किताबों में पाता हूँ
खुद अक्षर बन जाता हूँ।
मिट जाता है भेद सारा
नवीन रूप पाता हूँ
निर्मल शांत सरोवर में
स्नान का आनंद पाता हूँ।
एकीकरण का भाव लिए
जब बाहर आता हूँ
जग की दशा देख
फिर भ्रमित हो जाता हूँ।
ज्ञान के अक्षय भंडार को
मैं समेट न पाता हूँ
फिर अपने को
इन किताबों में पाता हूँ
खुद अक्षर बन जाता हूँ।