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Om Prakash Fulara

Others

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Om Prakash Fulara

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आँधी

आँधी

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थे पादप जो बड़े सुहाने,

आज लगे हैं वही डराने।

आँधी ने हुँकार भरी है,

सकल धरा यह आज डरी है।


छप्पर सारे आज उड़े हैं,

मूढ़ मुढाए घर ये खड़े हैं।

रौद्र रूप जो दिखा गई है,

मानव को कुछ सिखा गई है।


माना आँधी कुछ पल आती,

चलना सबको सिखला जाती।

दूर उड़ाती कूड़ा करकट,

साफ सफाई करती सरपट।



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