वात्सल्य
वात्सल्य
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लल्ला मेरे कब देखूँ मैं,
सुंदर चेहरा तेरा।
आकर गर्भ में धन्य किया है,
तूने जीवन मेरा।
ज्यों ज्यों बीते दिन ये मेरे
ममता दूनी हो जाती है।
गर्भ गृह की क्रीड़ा तेरी,
मन मेरा बहलाती है।
आजा अब तू धरती पर
ममता आज लुटाऊँ मैं
लगा के अपने सीने से
अब स्तनपान कराऊँ मैं।
नौ महीने तक गर्भ गृह में,
कितना दुख तूने पाया होगा।
आ ममता की छांव तले अब
निर्मल सुख का साया होगा।
वात्सल्य मैं अपना तुम पर
ममता रूपी आज लुटाऊँ
पूर्ण किया है तुमने मुझ को,
भूल यह कैसे जाऊँ।