STORYMIRROR

Om Prakash Fulara

Others

3  

Om Prakash Fulara

Others

पतझड़

पतझड़

1 min
241

बीती बरखा शरद फिर आया,

      सर्दी ने भी कदम बढ़ाया।

ठिठुर ठिठुर कर रह गए गात,

      पेडों के भी झड़ रहे पात।

डाल लगे ज्यों सूख गई हो,

      मानो प्रकृति रूठ गई हो।

दूर हुई हरियाली अब तो,

     नहीं सुहाती डाली अब तो।

कोकिल क्यों नहीं तुम हो आती,

      राग नया क्यों तुम नहीं गाती।

जीवन सूना यह है मेरा,

      कर दो अब तो नया सवेरा।

आया वसन्त बनकर हमजोली,

      ख़ुशियों से फिर भर जाए झोली।

आज मुझे नव पंख लगाओ,

      पतझड़ को अब दूर भगाओ।



Rate this content
Log in