गजल
गजल
जीना हम चाहते थे और मृत्यु पर आ गए।
तन्हाई पसन्द थी हमें और दुनिया में छा गए।
हम खोए थे सदा अपनी ही दुनिया में,
अपनों को चुभे और परायों को भा गए।
सच और झूठ के फरेब को जान न पाया,
तभी करीबी दूर और गैर पास आ गए।
घर और श्मशान में फर्क इतना है "ओम",
दुश्मन भी दोस्त बन श्मशान आ गए।