जीवन से क्या क्या.
जीवन से क्या क्या.
कैसा हो यह एकमात्र जीवन
पूछती है मेरी हँसी
पूछती है मेरी ख़ुशी
संग आ जाते हैं दुख
प्रश्न हैं उसके भी यही
क्या चाहिए मुझे
इस जीवन से
ज्ञान और मित्रता
स्वास्थ और संपदा
परिवार और ढेर सी किलकारियाँ
ख़ूब ऊँचा पद
और सैंकड़ों कामयाबियां
मेरा लोभ बढ़ता है जाता
मुझे कुछ समझ नहीं आता
अपेक्षाओं के पहाड़
ऊंचे होते हैं जाते
बौना करते और
मुझे हैं दबाते जाते
मैं चौंक जाता हूँ
यह मेरे क़द को क्या हुआ
होना चाहिए था कुछ और
और यह है क्या हुआ
तभी धरने पर बैठ जाती हैं
कुछ परछाइयाँ
हमें कोई नहीं स्वीकारता
जिसे देखो, वही है दुत्कारता
हम कहाँ जाएँ
बहुत हैं दुश्वारियाँ
मैं चुप हो जाता हूँ
शून्य में कहीं तकता हूँ
मेरा विवेक है जागता
अपने तर्कों से है समझाता...
ख़ुद को ज़रा सँभालो
ज़िंदगी को पहचानो
सात रंगों से बनते हैं इंद्रधनुष
हर रंग को प्यार करो
हर रंग में तुम ढलो
अच्छा बुरा चुनना छोड़ दो
अपना पराया गिनना छोड़ दो
सुख दुख दोनों को एक जानो
बेमतलब तमाशा करना छोड़ दो
जीवन से क्या क्या नहीं
जीवन से सबकुछ पाओ
ख़ुद तक क्यों हो सिमटते
संसार मात्र को अपना जानो