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Paramita Sarangi

Abstract

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Paramita Sarangi

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"इतिहास"

"इतिहास"

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वह था एक जर्जर 

घर का , उपेक्षित कमरा

इतिहास के किसी एक गर्वित

दुर्ग में,जो सबसे उच्च होने

के भ्रम में था

मगर उसे पता नहीं था

सहर में सूखे घास का एक 

जंगल फैलने लगा है

जिसकी शोणित धार

अपने आप में घिसकर

हत्या करने लगी है सपनों की


पूजा के योग्य पत्थर तो

स्वार्थ के अर्घ्य ले ले कर

टूटने लगा है

ओस को लपेट कर सुबह 

अपनी लज्जा को समेटने लगी है, 

अँधेरा भी खुद में उलझकर

और एक अँधेरे को

बुलाने लगा है।


कुछ तो करना पड़ेगा

ढूँढना होगा शब्दों के पीछे 

छिपे हुए अर्थ को

जरुरी नहीं कुछ

तोड़ना या गढ़ना 

अब इतिहास की नीरवता के

पास जाओ

रफू करलो उसके फटे हुए

कपड़ों को

सुन लो उसके टूटे शब्दों के

गुहार को,देखना अर्थ सारे

निकल आएँगे।


फिर तुम देखना

ये रात अब बेकार की 

ज़िद नहीं करेगी।


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