कविता लिखनी थी
कविता लिखनी थी
वह स्वर्ग जो मुझे
पुरस्कार में मिला है, वो तो
न होने के समान है
कैसे उसे अपना बनाऊँ ?
उस डूबते सूरज को
रोक लूँ तो.......
न अँधेरा होगा
न मंजिल धुंधली होगी
पर अफ़सोस की बात है
आज़ कल बहुत कम चीजें
असर करतीं हैं।
क्या सचमुच मेरे प्रस्थान से
तुम्हें कष्ट होगा.....
में तुम्हें बता दूँ
जिस रस में रहस्य नहीं
वह कविता नहीं,
अब मुझे जाने दो
भीगना है मुझे
राग में,
अनुराग में,
विराग में।
मुझे ऐसे मत देखो
तुम्हारी आँखें
बिल्कुल यशोधरा की जैसी,
जिन आँखों में बुद्ध भी
बौने दिखाई देते हैं।
मत रोको मुझे, देखो
चिकना पत्थर भी शांत समुद्र में
पाँव धोने लगा है।
कविता लिखनी है अभी
नहीं तो
रात खो जाएगी
आकाश की बाहों में, और
सुबह कहीं और
निकल जाएगी।
पारमिता षड़गीं&nb
sp;थी
वह स्वर्ग जो मुझे
पुरस्कार में मिला है, वो तो
न होने के समान है
कैसे उसे अपना बनाऊँ ?
उस डूबते सूरज को
रोक लूँ तो.......
न अँधेरा होगा
न मंजिल धुंधली होगी
पर अफ़सोस की बात है
आज़ कल बहुत कम चीजें
असर करतीं हैं ।
क्या सचमुच मेरे प्रस्थान से
तुम्हें कष्ट होगा.....
में तुम्हें बता दूँ
जिस रस में रहस्य नहीं
वह कविता नहीं,
अब मुझे जाने दो
भीगना है मुझे
राग में,
अनुराग में,
विराग में।
मुझे ऐसे मत देखो
तुम्हारी आँखें
बिल्कुल यशोधरा की जैसी,
जिन आँखों में बुद्ध भी
बौने दिखाई देते हैं।
मत रोको मुझे, देखो
चिकना पत्थर भी शांत समुद्र में
पाँव धोने लगा है।
कविता लिखनी है अभी
नहीं तो
रात खो जाएगी
आकाश की बाहों में, और
सुबह कहीं और
निकल जाएगी।