अगर मै किताब होती
अगर मै किताब होती
अगर मैं किताब होती,
तो कसम से लाजवाब होती।
किसी शायर के टूटे दिल से,
निकले शब्दों में अंकित
कोई कविता बेमिसाल होती।
अगर मैं किताब होती...
किसी देशभक्त के रगों में,
उबलते लहू का प्रतीक बन
प्रेरणा का अलौकिक प्रमाण होती।
अगर मैं किताब होती...
उज्ज्वल जिससे भविष्य हो,
उन तरीको का अल्फाजों में बन्द
एक सुगम सुनहरा पैमान होती।
अगर मैं किताब होती...
ज़िन्दगी की कठिनाइयों,
मुश्किलों की अंधेरी रात में
एक उम्मीद की महताब होती।
अगर मैं किताब होती...
सीमा पर खड़े उस वीर का मज़हब बन,
किसी मां का पन्नों में लिखा इंतज़ार
तो किसी प्रेमी का इज़हार होती।
अगर मैं किताब होती...
सोचो कितना हसीन वो मंज़र होता-
जब तुम्हे पढ़ने के लिए,
कोई अपनी नींद कुर्बान करता,
तो कोई तुम्हे हाथ में पकड़ कर सोता..
कोई तुम्हारे दुख में शामिल होकर,
तुम्हारे साथ भी निश्चल भाव से रोता।
इस बार तो नहीं, पर हां,
अगली बार बनना चाहती हूं
मैं भी वो किताब,
जिसे मिले बुकर्स प्राइज़
या हो जाए किसी का नायाब खिताब।
काश! मैं किताब होती
काश! मैं सचमुच किताब होती!
