ख्वाहिश
ख्वाहिश
घर की गलियां, वो चौबारा छोड़;
बस निकल आएं हैं कहीं दूर, चलते - चलते।
मंज़र की खबर भी है और रास्तों की परवाह भी,
पर इस पल में ही थम जाए ये शाम, यूं ही ढलते - ढलते।
घर की गलियां, वो चौबारा छोड़;
बस निकल आएं हैं कहीं दूर, चलते - चलते।
मंज़र की खबर भी है और रास्तों की परवाह भी,
पर इस पल में ही थम जाए ये शाम, यूं ही ढलते - ढलते।