अन्तिम प्रेम
अन्तिम प्रेम
बेशक प्रेम
सुंदर ना हो मेरा
पर ये बरसता है
तुम पर
अब भी फुहार बनकर,
नफरतों के फासले
बेशक तुमने बना लिए हैं
हम दोनों के बीच,
पर वो बेमानी है
उस पतझड़ कि तरह
जो कब का बिन बताए
चुपके से विदा ले चुका है,
प्रेम थका मांदा
अब पस्त हो चुका है
राह तुम्हारी देखते देखते,
चाहत भी अब
विकल हो चुकी है
जीवन में मेरे
तुम्हारी याद बनकर,
हर लम्हा थम चुका हैं
थक गए हैं,
बैठ कर
जो गुजरे थे कभी
हम दोनों के साथ साथ,
और मैं,
गिन रहा हूं
अब
चंद सांसे अपनी,
अपने अंतिम प्रेम के खातिर,
उन सूखी
गुलाबी पंखुड़ियों की तरह
जो मुरझा गई है
प्रेम की निशानी
बन
बंद किताब में।