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Rahul kashyap

Abstract

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Rahul kashyap

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सजदे

सजदे

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यूँ सजदों मे झुकते ही

तेरा नाम जावा पे आता हैं

लवों प आते आते रुक जाती है दुआ मेरी 

मुझको मालूम है ।

दुआओं मैं अशर कहा से आता हैं।

ग़ज़ब तो ये होता हैं।


मेरी आयतो में ना कोई खुदा होता है

बस सजदों में सर झुका होता है

ए खुदा अब तू ही बता दे

क्या इश्क़ मे ये जफ़ा होता है।

तेरे सजदे मे रहता हूं मै

और होटो पे बो जपा होता है


क्या ये कोई महरूफ़ मुफ़्गिल सा लगता है

या मेरे खुद बो खुद भी 

मुझे तेरे जैसा दिखता है।

मैं जब भी लेता हूं नाम तेरा मेरी तस्वी में

नाम उसका बसा होता हैं

क्या ये जायज़ जफ़ा होता है

जब सर मेरा तेरे सजदों मैं झुका होता है।


उसकी आँखों के नूर से बनती है 

एक मुकमल तस्वीर सी तेरी 

  • देखकर उसको ये इश्क़


मेरा मुकमल होता है।

जब सजदों मैं सर मेरा झुका होता है।


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