मेरे इश्क़ का इश्तहार
मेरे इश्क़ का इश्तहार
मेरे इश्क़ का इश्तहार छपवा दो ना
हो तुम मेरे पूरे शहर को बता दो ना।
कह दो ये जहां से , तू मुझमे इबादत करने लगा है
कह दो कि ये सर अब तेरे सजदों में झुकने लगा है।
हो सिर्फ तुम मेरे ये दुनिया को बता दो ना
तुम ये इश्तहार छपवा दो ना।
कमजर्फ निगाहों से देखकर तुमको
गुस्ताखी करता है ये शहर तुम्हारा ।
हर शामयाने पर मेरी तस्वीर लगवा दो ना
तुम मेरे नाम का कोई इश्तहार छपवा दो ना।
कह देना उसकी महक से
चमकता है ये मेरा समा सारा ।
ये जो दीप जले हैं शहर की ऊंची मीनारों पे उनको बुझा दो ना।
तुम मेरे नाम का इश्तहार छापवा दो ना

