अच्छा हुआ वो ना मिले
अच्छा हुआ वो ना मिले
ऐसा भी वक्त था ज़िन्दगी दगी मे हमारी
उनके लिए हमें मौत भी कबुल होती
अच्छा ही हुआ जो तुम ना मिले
वर्ना ज़िन्दगी काटों सी बबुल होती।
आंखों को बस उनका ही इंतजार था,
पल पल दिल उनके लिए बेकरार था।
अब आँखों को उन्हें खोने का ग़म नहीं
क्या पता आँसू की जगह इनमें खून होती।
उन्हें अपने जीने का नज़रिया बना डाला,
पाने के लिए अपनी हर खुशी को मार डाला।
ना देख पाते जिंदगी का अलग नज़रिया,
अगर आंखों में उन्होंने ना झोकी धूल होती
अच्छा ही हुआ वो ना मिले वर्ना
उनको पाना सबसे बड़ी भूल होती।