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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

"भरोसा खुद ही का"

"भरोसा खुद ही का"

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तू मत कर,यहां पर इंतजार किसी का

तू मत कर,यहां पर ऐतबार किसी का

तू कर बस यकीन यहां पर खुद ही का

यहां पर कोई नही है,सगा किसी का


तू परिश्रम कर,अपना भाग्य बदल

तू मत बहा,व्यर्थ,यहां पर अक्षु जल

बिन कर्म यहां पर न खिलेगा,कमल

तेरा खुद का सँघर्ष बनायेगा,कुंतल


वक्त न खो कीमती,इस जिंदगी का

कर्म से,मिटा बुरा वक्त मुफ़लिसी का

मत रो रोना,कभी साधनों की कमी का

कर हिम्मत,बदल दे वक्त,यह सूली का


हर मनु लुटेरा है,यहां अपनी जमीं का

न छोड़ना यकीन,तू कभी खुद ही का

टूटा हुआ आईना कभी नहीं दिखाता है,

पूरा कोई बिम्ब कभी यहां पर किसी का


न टूटना कभी,रखना हौंसला गिरी का

यह बुरा वक्त गुजर जायेगा,जिंदगी का

तू मत चुन रस्ता कभी भी खुदखुशी का

हौंसलों से शूलों में फूल खिलेगा कली का


कोई न आयेगा,सहारा बनने जिंदगी का

स्वयं लड़,खुद बन सहारा,खुद ही का

मत रो रोना,सबके सामने बुजदिली का

खुद खोल,सोया भाग्य ताला जिंदगी का


विश्वास ही धोखा है,यहां पर सभी का

बालाजी सिवा,न करना यकीं किसी का

वही कुल्हाड़ी मिटाती,निशां हरीयाली का

जिसका हत्था बना है,उनकी बिरादरी का


ऐसे ही हमे डुबोता है,भरोसा हम ही का

जिसे मानते है,खुदा अपनी जिंदगी का

छोड़ दो यकीन करना,स्वार्थी बंदगी का

बनोगे हीरा, गर किया भरोसा खुद ही का।


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