STORYMIRROR

कीर्ति त्यागी

Tragedy Inspirational

4  

कीर्ति त्यागी

Tragedy Inspirational

कैसी ये आज़ादी है

कैसी ये आज़ादी है

2 mins
330


नफरतें बढ़ गई है इस कदर जिंदगी खाली है,

कोई तो बताए ज़रा कैसी ये आज़ादी है।


जिंदगी है अंधेरे में।हो रहे हैं कत्लेआम,

बढ़ रही है गद्दारी और ज़ुल्म हो‌ रहे सरेआम।


क्या ये‌ वही आजादी है,

जिसकी किमत शहीदों ने अपनी जान देकर लगाईं है।


कहीं नशें का तो कहीं जिस्म का आज़ादी के नाम पर हो रहा व्यापार है,

अरे मूर्खो ज़रा देखो क्या यही जिंदगी का सार हैं।


क्या ये वही आजादी है जिसकी कीमत मां ने चुकाई है,

आज उसी आज़ादी की खातिर। तुमने मां की दुर्गति करवाई है।


जश्न आज़ादी का मनाते हो।तिरंगा भी घर‌ लाते हो,

फिर उसी तिरंगे को कूड़े में फेंकने की क्यों नौबत आई है।


परिधान के‌ नाम पर‌। नंगा नाच दिखाते हो,

काला चश्मा लगा कर‌ आंखों पर।, आजादी आजादी चिल्लाते हो।


दिखावे

का ढोंग रचाते हों। अपनों को ही रूलाते हो,

आधुनिकता के नाम पर अपनों के गले दबाते हो।


आज़ादी कोई ढोंग नहीं। दिल से अपनाई जाती है,

आधुनिकता के नाम पर परम्परा नहीं गंवाई जाती है।


आज़ादी को अब भी पहचानो।करो कुछ ऐसे काम,

देश की कीमत समझो। वरना फिर हो‌ जाओगे गुलाम।


आज़ादी कोई वस्तु नहीं खरीद नहीं पाओगे,

तुम में इतनी ताकत नहीं कि फिर आजादी पाओगे।


विरले ही भगतसिंह और सुभाष चन्द्र बोस जन्म लेते हैं,

आजादी के फूल को जो जान गंवाकर बोते हैं।


सोने की चिड़िया कहीं खो गई है जरा ढूंढ कर लाओ,

मदहोशी के चक्कर में अपने वतन की ना दुर्गति करवाओ।


तो सुधर जाओ।और सुधारों औरों को,

खुद भी समझो आजादी को औरों को भी समझाओं।


कैसी ये आज़ादी है कोई मुझे भी बतलाओ।

जय हिन्द जय भारत


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy