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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Inspirational

मैं हिन्दी हूँ हिन्द की भाषा

मैं हिन्दी हूँ हिन्द की भाषा

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क्यूँ छोड़ दिया मेरा संग ?

क्यूँ कर दिया मेरा स्वप्न भंग ?

मैं तो आपकी अपनी ही थी न,

क्यूँ आहत किये मेरी देह के अंग ?

 

कभी प्रेम बहुत तुम करते हो,

कभी अपने से विलग करते हो।

ऐसी भी क्या खता हो गई मुझसे,

क्यूँ यूँ मुझे तुम विस्मृत करते हो ?

 

हिन्द की थी मैं पहचान,

थी मैं सदा हिन्द का गौरव।

भारत की हूँ मैं राष्ट्रभाषा,

भाषा हूँ मैं बड़ी ही सौरभ।

 

हिन्द देश की थी मैं आशा,

सौम्यता ही मेरी परिभाषा।

हर जुबां पर रच बस जाऊँ,

यही आज मेरी अभिलाषा।

 

मेरी जुबां में जब लिखते अल्फाज़,

अपनेपन का तब होता है अहसास।

एक दिन विश्व की भाषा बनूँगी,

इस बात का है पूरा ही विश्वास।

 

देव भाषा संस्कृत से हुआ जनम,

किये होंगे जरूर कूछ अच्छे करम।

सभी भाषाओं को अपना लेती हूँ,

सहजता ही मेरा परम है धरम।

 

साहित्य जगत की मैं थी सार,

मुझी से था साहित्य का श्रृंगार।

क्यूँ रखते हो मुझसे यूँ परहेज,

मैं ही तो देती भावों को अलंकार।

 

करा दो मुझे हर राष्ट्र में उपलब्ध,

लिख पाऊँ मैं ब्रह्माण्ड का प्रारब्ध।

बढ़ा दो मेरा वर्चस्व कुछ यूँ जग में,

मिटा सकूँ देशों के बीच का द्वन्द।

 

चाँद तक तो पहुँच ही गई हूँ,

सूरज को पाना अब चाहती हूँ।

ब्रह्माण्ड के हर कण कण में,

हर जुबां पर खुदको चाहती हूँ।

 

राम कृष्ण की भक्ति धार,

देश विदेश में बही रसधार।

मैं ही हूँ उस धारा का कण,

ब्रह्माण्ड की बनूँ मैं आधार।

 

विश्व का हर साहित्य संवाद,

करना है मुझे ख़ुद में अनुवाद।

पूरा ब्रह्माण्ड देख रहा एकटक,

मेरा बढ़ता वर्चस्व व उन्माद।

 

माँ भारती के माथे की बिंदी,

संस्कृत की पुत्री हूँ मैं हिन्दी।

राम कृष्ण की अलख जगाऊँ,

सर्व धर्म समान का भाव मैं हिन्दी।

 

देश भक्ति से हूँ भरी पूरी,

राष्ट्र गान की हूँ मैं धुरी।

दिलों में यूँ घुल मिल जाऊँ,

पूरी कर दूँ मैं हर बात अधूरी।

 

थी मैं तो पहले भी राष्ट्रभाषा,

मुझ से ही हिन्द की परिभाषा।

अब बनना है ब्रह्माण्ड की भाषा,  

है मन में आज यही अभिलाषा।

 

गूँज उठे मुझ से पूरा आसमान,

लौटा दो मुझे मेरा आत्म सम्मान।

हर शब्द का मैं मनका बन जाऊँ,

चमके विश्व साहित्य का जहान।

 

न समेटो मुझे यूँ एक दिवस में,

लगा कर रखो मुझे मन मानस में।

कोई तो आज मेरा दर्द समझ लो,

जगा दो आस इस हिन्दी के मन में।

 

जय माँ सरस्वती। जय माँ भारती।


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