Husan Ara

Abstract

5.0  

Husan Ara

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ज़िन्दगी के मायने

ज़िन्दगी के मायने

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तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"


उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?


" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।


" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।


" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।


" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।


" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।


"बस ज़िन्दगी से नीरसता समाप्त करना चाहती हूँ। तुम तो जानती हो बच्चों के दूसरे शहरों में सैटल होने के बाद ही से काफी अकेलापन आ गया था ज़िन्दगी में। लेकिन ज़िन्दगी तो चलने का नाम है ना तो हम क्यो रुकें?" संदली की आंखों में झांकते हुए जानकी जी ने कहा था।


संदली अपनी भावनाओं पर काबू पाते हुए झूठी मुस्कान के साथ जानकी जी की बातें सुन रही थी । 


"तुम बताओ बेटा, तुम्हारी मम्मी शादी के कितने सपने सजाए बैठी हैं, तुम आखिर उनकी बात मान क्यों नही लेतीं, तुम्हारी ज़िन्दगी में भी कुछ नयापन और ताजगी आ जाएगी देखना"। बहुत प्रेम में डूबे शब्दों के साथ जानकी जी संदली को समझाने का प्रयास कर रहीं थी।


अपनी ख़ामोशी तोड़ते हुए संदली जानकी जी की ओर देखकर बताने लगी कि कैसे उसका रिश्ता एक बहुत ऊंचे और अमीर घराने में करने की ज़िद माँ लगाए बैठी हैं।


"आंटी क्या सिंबल ऑफ स्टेटस के लिए अपनी बेटी यानी मेरा विवाह एक ऐसे घर में करने का काम बुरा नही है, जहाँ मेरे पापा की जीवन भर कमाई हुई पाई पाई को पानी की तरह बहाना पड़े।"



"लेकिन बेटा हर माँ बाप का सपना होता है अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने की कोशिश करना" जानकी जी बोली।


"और अपना आत्मसम्मान? वो तो इन सपनो से पहले आता है ना! वो लोग मम्मी पापा को बातों बातों में इतना कुछ सुना जाते हैं, मगर माँ ने तो जैसे अपने कान ही बंद कर लिए हैं, लेकिन मेरे कान और मस्तिष्क दोनो खुले हैं, पैसे और सोने चांदी की चमक से ज़्यादा मुझे अपना आत्मसम्मान और माता पिता की इज़्ज़त प्यारी है।"

संदली अपने मनोभावों को जानकी जी को समझाने की पूरी कोशिश कर रही थी।

जानकी जी जानती थी कि आजकल की लड़कियां मात्र गहनों और महंगे कपड़ो के लिए नहीं जीती, ना ही पैसे की अकड़ से कोई उनका हौसला घटा सकता है। वे अपने जीवन में ऐसा साथी चाहती हैं जिसके साथ वे कंधे से कंधा मिला कर खड़ी हो सकें। जिसके साथ वे शो पीस नहीं उसकी दोस्त बन सकें।


मगर शायद बेटी के प्रेम और समाज की बातों से संदली की माँ ये सब भूल रही थी।


उस समय तो जानकी जी वहां से चली गईं। कुछ दिन बाद वे संदली की माता जी यानी शांति जी को लेने उनके घर आ गईं।

उस समय शान्ति जी घर के कामो में व्यस्त थी । जानकी जी उन्हें कुछ ज़रूरी काम कहकर अपने साथ कार में ले कर चल पड़ीं।


थोड़ी देर बाद कार एक बड़े से होटल के बाहर आकर रुकी । जानकी जी उन्हें अंदर लेकर जाने लगीं। मगर शान्ति जी वहां जाने में कुछ झिझक महसूस करने लगीं क्योकि वह न इस प्रकार तैयार होकर आईं थी ,ना ही पहले कभी वो इतने महंगे होटल में आई थीं।

किसी प्रकार जानकी जी की ज़िद के चलते वे अंदर पहुंच तो गईं लेकिन सब सुटेड बूटेड लोगो को देखकर वे स्वयं को बहुत कमतर महसूस कर रहीं थीं।


वेटर भी उनसे ज़्यादा ध्यान दूसरी बड़े ओहदों वाली अमीर औरतो पर दे रहे थे । खाना बड़ी मुश्किल से पूरा करके उठने पर जानकी जी का 10 हज़ार का बिल देखकर शांति जी आश्चर्य चकित थीं।


होटल से बाहर आकर शान्ति जी ने चेन की सांस ली।


"जानकी जी इतनी घुटन मैंने कभी महसूस नही की थी, आप मुझे बताती तो हम इससे स्वादिष्ट, बेहतर और सस्ते रेस्तरां में आपको लेकर चलते ।उनके छुरी -कांटे नींबू वाले पानी नैपकिन इत्यादि देखकर तो जैसे मेरी सांसे तेज़ हो रहीं थी,कि मैं सही से इस्तेमाल तो कर रही हूं ना"। कार का दरवाज़ा बन्द करते समय शान्ति जी बता रहीं थीं।



"लेकिन शांति जी आप तो ये घुटन जीवन भर के लिये अपनी बेटी की किस्मत में लिख देना चाहती हैं" कार ड्राइव करते समय जानकी जी कहने लगीं।


शान्ति जी सोच में पड़ गई कि किस तरह वे स्वयं को सबके आगे कमतर महसूस करती रहीं जबकि किसी ने उनकी तरफ शायद ध्यान भी ना दिया हो।


तो क्या...

संदली को भी जीवन भर यही सोचना पड़ेगा कि क्या ये सब काम मैं सही कर रहीं हूँ? चाहे वो कुछ भी कर ले मगर एक डर और आशंका उसके मन में बनी रहेगी।


जानकी जी की तरह चाहे मैं कितना ही पैसा लगा दूँ मगर संदली से ज़्यादा ध्यान वे लोग दूसरी बहू बेटियों पर ही देंगे।


तो क्या संदली भी उस गहने बंगले कारों की दुनिया मे वही घुटन महसूस करने लगेगी जो अब से कुछ देर पहले मैं महसूस कर रहीं थी।


शांति जी के गालों पर लुढ़कते आंसुओ की धारा देखकर जानकी जी मुस्कुराते हुए बोली "आप अपनी बेटी के लिए खुशहाल ज़िन्दगी चुनिए महंगी नही और अपने लिए दामाद चुनिए कोई राष्ट्रपति नही जिसे घर मिलने बुलाने को भी अपनी कमियों को छुपाने को दीवारें बनवानी पड़े या सब जमापूंजी सिर्फ दिखावे में खर्च करनी पड़ जाए"। हँसते हुए जानकी जी बोली।


शांति जी भी मुस्कुरा रहीं थी, चकाचौंध और माया की ज़िंदगी को देखकर जीवन के मायने तो वे जैसे भूल ही गईं थी ।


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