आत्म-विश्वास
आत्म-विश्वास
अपने राज्य की सीमा का एक छोटा मगर धन धान्य से परिपूर्ण हिस्सा, सोमन राज्य के राजा से हारे हुए राजा वेंकट गहन चिंता में थे।
सोमन के राजा ने पहले झूठी दोस्ती बढ़ाई और फिर ईर्ष्या के कारण राजा वेंकट को धोखा देकर वह ज़मीन कब्ज़ा कर ली थी।
राजा वेंकट ने अपनी सब सीमाओं पर सुरक्षा अब ज्यादा बढ़ा दी थी, और सोमन राज्य से युद्ध करने की भी ठान ली थी। मगर उन्हें इस बात का भली प्रकार ज्ञान था कि उसे हराना कोई आसान काम नही है।
और दूसरे मित्र राज्यों ने भी राजा वेंकट का साथ देने से मना कर दिया था।
इन्ही सब दुविधाओं में फसे राजा वेंकट ने अपना बाकी राज्य ही अब और अधिक सुरक्षा के साथ संभालने का निर्णय लिया।
भेस बदलकर अपने राज्य का भ्रमण करते हुए ,राजा वेंकट अब पहले से अधिक लोगों तथा उनकी समस्याओं पर ध्यान देने लगे थे।
एक दिन उन्होंने देखा कि एक आठ –नौ वर्ष का बालक एक ऊंचे वृक्ष को अपनी पूरी ताकत लगाकर हिलाने की कोशिश कर रहा है।
पूछने पर पता चला कि खेलते समय उसकी एक बड़ी गेंद पेड़ की किसी ऊंची टहनी पर जाकर अटक गई थी।
हालांकि उस बालक के चेहरे पर न कोई चिंता थी न ही दुख । मगर वह फिर भी पूरी कोशिश से उसे ढूंढने की कोशिश कर रहा था।
राजा ने अपने मंत्री से उसे कुछ मोहरे दिलवाई और कहा कि तुम जाकर नई गेंद ले लेना ।
उस समय तो राजा वहां से चला गया । मगर कुछ दिन बाद भ्रमण करते हुए राजा फिर से उसी पेड़ के पास पहुंचा, तो उस बालक को पेड़ की आधी ऊंचाई तक चढ़ा हुआ देखा।
मंत्री ने उससे वजह पूछी तो उसने बताया " इतने दिन की मेहनत के बाद मैं यहां तक चढ़ना सीख गया हूं। बस कुछ दिन की मेहनत और लगन से मै जल्द ही अपनी गेंद तक पहुंच जाऊंगा।"
राजा वेंकट ने उससे पूछा "तुमने किसी और की मदद क्यों नही ली ? और न ही इस गेंद का मोह त्यागा।"
यह सुनकर वह बालक हंस कर बोल पड़ा "फिर तो हमारे महाराज की तरह मुझे भी इस गेंद को भूलकर अपने बाकी खिलौनों को एक तिजोरी में रख देना पड़ता"
सुनकर राजा वेंकट गुस्से से भर गए।
वह बालक आगे बोला " और इसी तरह धीरे धीरे एक दिन मेरे सब खिलौने खो जाते , जिस किसी से मैं मदद मांगने गया वह मेरे हौसले को और खत्म कर देता था। अतः मैंने अपने ही बल पर ही यह सब करने की ठानी है । और मुझे स्वयं पर विश्वास रखना होगा , तभी मैं सफ़ल हो सकता हूं।"
राजा वेंकट ने वापिस आकर उस बालक की बातों पर गहन चिंतन किया और पूरी तैयारी के साथ सोमन के राजा पर चढ़ाई करने का निर्णय किया।
आत्मविश्वास से लड़े गए इस युद्ध में वो न केवल सफल हुए, बल्कि उनका मान भी चारों ओर बढ़ गया।
अपने गुरु अर्थात उस बालक को सम्मानित करने के लिए राजा वेंकट की ओर से आमंत्रण भेजा गया ।
उस दिन वह बालक अपने माता पिता के साथ दरबार में लाया गया था और आज वह गेंद भी उसके हाथ में थी, जोकि उसके आत्मविश्वास का प्रतीक थी।