Husan Ara

Children Stories Children

4.6  

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चमकीली चिड़िया

चमकीली चिड़िया

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पुराने समय में पढ़ाई के लिए माता– पिता अपने बच्चो को ,गुरु जी के पास आश्रम में भेजा करते थे।

वहां उन्हें अच्छे संस्कार और खुले वातावरण में शिक्षा दी जाती थी । वहां बच्चों के नैतिक और चारित्रिक विकास में बहुत सुधार किया जाता था।

जय और करन दोनों सगे भाई थे , मगर उनकी आदत और स्वभाव में बहुत अंतर था।

जहां एक ओर जय अपनी कक्षा में सबसे अधिक बुद्धिमान विद्यार्थी था , वहीं करन अपने कामों में बहुत सुस्ती दिखाता तथा कार्य समय पर पूरा नहीं करता था।

करन को लेकर गुरुजी हमेशा चिंता में रहते।

गुरुजी ने करन को प्यार से और गुस्से से हर प्रकार समझाया , लेकिन करन कभी समय पर अपना पाठ याद नहीं कर पाता था।

करन की सुस्ती और मूर्खता के कारण अब वह सभी विद्यार्थियों से बहुत पीछे रह गया था।

यहां तक कि वह जय से मन ही मन बैर रखने लगा था।

यह सब देखकर गुरुजी ने करन को सुधारने के लिए उसकी दिनचर्या की निगरानी करना प्रारंभ किया।

उनको ज्ञात हुआ कि करन को बहुत अधिक सोने की आदत थी। वह गुरुजी के पास पढ़ने जाने से चंद मिनटों पहले ही अपनी नींद से उठता। गुरुजी के डर से भागते दौड़ते स्नान करता, तथा कुछ खाए–पिए बिना ही कक्षा में पहुंच जाता। 

जबकि अन्य विद्यार्थी गुरुजी के आदेशानुसार सुबह कसरत और योगा करते, फल तथा दूध ग्रहण किया करते , जिससे उनके मस्तिष्क में चुस्ती और तेज़ी रहती।

"देखिए गुरुजी , जय मुझे गिराना चाहता है" एक दिन खेल के मैदान से करन चिल्लाया।

मगर सभी बच्चे जय का पक्ष लेने लगे, यह देखकर करन रोने लगा।

गुरुजी ने सभी बच्चों के वहां से चले जाने के बाद, बड़े ही प्रेम से करन को अपने पास बुलाया , और उसके रोने का कारण पूछा।

" गुरुजी जय मुझसे अच्छा बनकर सबके सामने दिखावा करता है , उसने मेरे सब दोस्तो को भी अपनी तरफ मिला लिया है। पढ़ाई में अपने पाठ याद करके मुझ पर रौब जमाता है " करन अपनी सभी बातें बहुत दुखी मन से बता रहा था।

गुरुजी, जय की व्यवहारकुशलता जानते थे , फिर भी उस समय उन्होंने करन को कुछ ना कहते हुए , अपने सीने से लगा लिया। कुछ ऐसा ही प्रेम था उस समय शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के प्रति।

तभी गुरुजी को एक उपाय सूझा । उन्होंने करन को बताया कि " जय भी पहले, तुम्हारी तरह ही पाठ याद नहीं कर पाता था। मगर जबसे उसने उस चमकीली चिड़िया को देखा है, उसे बुद्धिमता का वरदान मिल गया है। "

"चमकीली चिड़िया? वो कहां है गुरुजी? " करन ने बड़ी ही फुर्ती से पूछा।

" देखो वह चिड़िया सूरज निकलने से पहले इस वन में अक्सर उड़ती फिरती है, और जिस किसी को पठन कार्यों तथा व्यायाम आदि में लगा हुआ पाती है , उसे वरदान  देकर जाती है।

 वह किस दिन आती है इसका ज्ञान किसी को नहीं।" गुरुजी ने राज़ बताने के अंदाज में करन को समझाया।

करन सभी बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था । वह बात को समझकर सोचते हुए कहने लगा "तभी जय रोज़ सुबह से पहले ही बिस्तर से गायब हो जाता है, हालांकि मुझे कई बार उठाता भी है , मगर यह राज़ नही बताता !" 

अगले एक महीने तक वह रोज़ वन जाकर कसरत करता, चिड़िया की खोज में सूरज की रोशनी होते ही पढ़ाई करता रहता।

धीरे –धीरे यह उसकी आदत बन गई।गुरुजी उसकी मेहनत और लगन देखकर बहुत प्रसन्न थे।

 परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने के लिए गुरुजी ने करन को सम्मानित करने के लिए अपने पास बुलाया। जय की खुशी और प्यार देखकर करन के मन के सभी मैल साफ हो गए , उसने जय को गले लगाया और अपना पुरस्कार लेने गुरुजी के पास पहुंचा।

गुरुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया और फिर उनके कान के पास जाकर बोला " वह चमकीली चिड़िया मुझे तो नज़र नही आई परंतु मुझे लगता है कि उसने मुझे कहीं छुप कर देख लिया है"। 

गुरुजी ने मुस्कुराकर करन को देखा और कहा " बस अब किसी भी दिन सूरज निकलने के समय उसे सोते हुए मत मिल जाना , ताकि वह अपना वरदान वापिस ना ले पाए"।

आज करन दृढविश्वास और मजबूत इरादे से खड़ा हुआ, सभी सहपाठियो को अपने लिए तालियां बजाते हुए देख रहा था और मन ही मन चमकीली चिड़िया को धन्यवाद कर रहा था ।


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