तब जाना खाने का मोल
तब जाना खाने का मोल
जब रिया खाना लेकर पड़ोस के गरीब घर में पहुँची, तो वहां मौजूद बच्चों में जैसे खुशी की लहर दौड़ गई।
पति शायद भूखा ही था, जो उसकी पत्नी ने खाना आते ही उसे परोस दिया। बच्चे भी पिता के साथ फ़ौरन खाने बैठ गए।
रिया थोड़ी थकी हुई थी , इसलिए थोड़ी देर वहीं बैठी ये नज़ारा देखती रही।
"खाना कितना अच्छा है" बच्चे बीच बीच मे ये बात दोहराते तो रिया के चेहरे पर मुस्कान खिल जाती।
असल मे आज रिया के घर कुछ रिश्तेदार आने वाले थे, मगर किसी कारण आ नहीं पाए। कितने पकवान आदि उसने तैयार किये थे।जिस वजह से वह बहुत गुस्से म
ें थी।
हालांकि वह जिस गुस्से और दुख से ये खाना इस घर में देने आई थी वह कहीं छूमंतर हो गया था। कुछ बाकी था तो सन्तोष और खुशी।
उसके बनाए खाने का इतना आदर और प्यार शायद वो रिश्तेदार न कर पाते , वो तो शायद रोज़ इससे भी अच्छा कुछ खाते होंगे।
वह जाने को खड़ी हुई तो एक छोटा बच्चा उसके पास आकर खड़ा हुआ और पूछने लगा " दीदी फिर कब आओगी"।
"जल्द ही" कहते हुए रिया की आवाज़ में दृढ़ निश्चय के साथ ही प्यार भी था।
खाने का मूल्य रिया को भी शायद आज ही समझ आया था। वह खुश थी, किसी और के चेहरे की खुशी को देखकर।