Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Inspirational

युवाओं के आदर्श-सचिन तेंदुलकर

युवाओं के आदर्श-सचिन तेंदुलकर

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"पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब ,

खेलोगे कूदोगे तो हो जाओगे खराब'


 यह पहले कहा जाता था लेकिन इस संसार में परिवर्तन ही अपरिवर्तित रहता है और बाकी हर चीज बदल जाती है इस कहावत को उलटा कहने का समय आ गया है। आधुनिक समय में इस प्रकार कहा जाता है


खेल के कूद के बन जाओगे नवाब,

लेकिन अगर खेले कूदे नहीं तो,

 सेहत हो जाएगी खराब"

- हमारे विद्यालय के शारीरिक शिक्षा के अध्यापक अपनी कक्षा में खेलकूद के महत्व को समझाते हुए बच्चों से कह रहे थे।


"लेकिन सर ,गली मोहल्ले में कितने सारे बच्चे खेलते नजर आते हैं। खेलकूद के महत्व को आज के समय में सभी बच्चों के माता-पिता भी अच्छी तरीके से समझते हैं। वे भी अपने बच्चों को पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ खेलकूद में भी आगे बढ़ते बढ़ते हुए देखना चाहते हैं और इसके लिए स्वयं कष्ट उठाते हैं। अपने बच्चों के खेलने कूदने और उनकी फिटनेस के लिए सर्वोत्तम साधन और संसाधन उपलब्ध करवाना चाहते हैं। वे अपनी आर्थिक क्षमता से कहीं ज्यादा खर्च करते हुए अपने अपने आवश्यक खर्चों में कटौती करते हैं। अपवाद के तौर पर कुछ बच्चों के छोड़ दिया जाए तो अधिकांश बच्चे अपने माता-पिता के इस त्याग -भावना के महत्व को नहीं समझ पाते। इन्हीं अधिकारियों में से लगभग आगे बच्चे खेलकूद के नाम पर अपनी पढ़ाई लिखाई पर समुचित ध्यान नहीं देते। खेल के क्षेत्र में भी दूसरे क्षेत्रों की तरह अत्यधिक प्रतियोगिता है। हमारे समाज के कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिन पर ईश्वर की कृपा दृष्टि है इसलिए वे अपनी पढ़ाई -लिखाई' खेलकूद 'विद्यालय की अन्य पाठ्येतर गतिविधियों जैसे व चने की फसल आयोजित होने वाली विभिन्न प्रतियोगिताओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में भाग लेते हुए अपने माता-पिता के घरेलू कामों में भी उनकी मदद करते हैं। उनका मेहनती स्वभाव उनके शिक्षकों को उनके प्रति आकर्षित करता है। ऐसे बच्चों की शिक्षक भी बहुत ज्यादा दिलचस्पी ले करके उनकी मदद करते हैं अपवाद स्वरूप ऐसे बच्चे भी मिलते हैं। जिनकी जिनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है उन परिवारों के ये परिश्रमी बच्चे अपने अध्यापकों के सहयोग से बहुत उच्च परिणाम लेकर आते हैं खेलकूद सहित लगभग हर क्षेत्र में भी वे बहुत ही उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। ये बच्चे उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी होते हैं।"-सौरभ एक ही सांस में इतनी लम्बी बात कह गया।


"यह आज के समाज के हर व्यक्ति की धारणा बन चुकी है कि वह पढ़- लिख कर किसी ऐसे क्षेत्र में जाएं जहां  एक अच्छी सी नौकरी मिल जाए। अधिकांश विद्यार्थियों उनके माता-पिता का लक्ष्य इसके आसपास ही होता है। लोग कर्म की बजाय फल पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं । सफलता के लिए जिस साहस, धैर्य ,संयम ,नियोजन , परिश्रम और अनुशासन की आवश्यकता होती है ,वे वहां किन्हीं विशेष परिस्थितियों के कारण कमजोर पड़ जाते हैं। हर व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र की तरह ऐसे विषयों पर गहन विचार- मंथन की आवश्यकता है। वर्तमान समय की परिस्थितियों को भांपते हुए आवश्यक फैसले लिए जाएं। हर बच्चे का अपना एक सपना होता है लेकिन जीवन की वास्तविकता के धरातल पर जब उतरते हैं तो सारी, आलोचना एवं सारे विचार एक किनारे हो जाते हैं ।-मैंने सौरभ को समझाते हुए कहा था।

 

"दुनिया के सभी बच्चे तो सचिन तेंदुलकर की तरह बनने का स्वप्न देखते हैं लेकिन अलग -अलग परिस्थितियों के कारण परिणाम भी अलग मिलते हैं। पढ़ाई -लिखाई, खेलकूद के बीच में समायोजन स्थापित करते हुए दोनों ही क्षेत्रों पर गंभीरता पर समान रूप से ध्यान देना चाहिए जिस क्षेत्र में रुचि ज्यादा है उसके थोड़ा सा समय अनजाने में ही हो जाता है फिर भी यदि आवश्यकता होती है रूचि के अनुसार क्षेत्र में विशेष दक्षता हासिल करने के लिए कुछ विशेष कोर्स वगैरह भी ज्वाइन कर लिए जाते हैं। ध्यान रखें कि हर बच्चा मेजर ध्यानचंद, सचिन तेंदुलकर, साइना नेहवाल और पी टी ऊषा नहीं हो सकता। इनकी तरह होने के लिए उनके जीवन में उनके द्वारा किए गए संघर्षों पर भी दृष्टि डाल लेनी चाहिए क्योंकि उन्नति करके जब कोई ऊंचे स्थान पर पहुंच जाता है तो लोगों के मन में व्यक्ति को ऊंचाई पर ही उसको सदा से मानते हैं। इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए उसने जो संघर्ष किया है उसका एहसास दिल भर करती रं

लोग करते हैं और यह लोग ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। ये सभी ही प्रशंसा के अधिकारी होते हैं और लिए जीवन में ईर्ष्या के लिए भी।- निकृष्ट ने उन्हें समझाते हुए कहा।


राहुल ने अध्यापक महोदय से सचिन तेंदुलकर के जीवन के बारे में संक्षिप्त विचार जानने की इच्छा व्यक्त की। वह बोला ,"वे इस स्थान पर कितना संघर्ष करके पहुंचे हैं। संक्षेप में बताने की कृपा करें।"


अध्यापक महोदय बोले-"सचिन तेंदुलकर का पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर है जो भारतीय क्रिकेट के एक कीर्तिमान सितारे हैं। उनका जन्म 24 अप्रैल 1973 को हुआ था उन्होंने अपने अंतर्राष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत 1989 में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची से शुरू की थी।1998 में उन्होंने 189 4 रन बनाए जो कि एक कैलेंडर वर्ष में किसी भी बल्लेबाज द्वारा सबसे अधिक एकदिवसीय मैच में रन बनाने का रिकॉर्ड है एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के इतिहास में दोहरा शतक लगाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी हैं टेस्ट क्रिकेट में भी उन्होंने सबसे ज्यादा 51 शतक लगाए। सचिन तेंदुलकर के खेल की सबसे विशेष बात यह है कि सचिन कभी व्यक्तिगत अपने लिए खेलते ही नहीं थे। वह हमेशा अपने देश के लिए खेलते थे। उनके मन में क्रिकेट के प्रति अत्यधिक सम्मान था। उन्होंने गुस्से में आकर कभी किसी को कुछ नहीं कहा वह मैच में विरोधी खिलाड़ी हो या राजनीतिक जीवन में कोई नेता। वे राज्यसभा के सांसद मनोनीत किए गए। लेकिन उन्होंने अपनी इस छवि को हमेशा ही बरकरार रखा। यही कारण है कि बहुत से लोग विशेषकर युवा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।"


अरविंद ने जिज्ञासा बस पूछा -"हमारे देश के लिए उन्होंने इतना कुछ किया। हमारे देश ने उन्हें किस प्रकार सम्मानित किया !"


शारीरिक शिक्षक के अध्यापक जी ने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए बताया-"सचिन तेंदुलकर ने 16 नवंबर 2016 को क्रिकेट से सन्यास लेने का संकल्प लिया। हमारे देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' भारत सरकार ने उन्हें दिया। 4 फरवरी 2014 को भारत के राष्ट्रपति महामहिम प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। 40 वर्ष की आयु में इस सम्मान को प्राप्त करने वाले में सबसे कम उम्र के व्यक्ति और सबसे पहले खिलाड़ी हैं। इससे पहले यह सम्मान खेल के क्षेत्र में नहीं दिया जाता था। सचिन को यह सम्मान देने के लिए पहले के नियमों में बदलाव किया गया।"


अरविंद ने कहा-"ऐसे महान व्यक्ति ही तो हम सब की प्रेरणा के स्रोत होते हैं। हमें सबको उनसे सीख लेनी चाहिए और उनके पद चिन्हों का अनुकरण करना चाहिए।


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