यशस्वी (12) ...
यशस्वी (12) ...
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जीवनी के (पीएचडी) विश्वविद्यालय एवं गाइड प्रोफेसर पिछले शहर में थे। अतः उसका वहाँ जाना एवं वापिस आना चल रहता था। यशस्वी एवं जीवनी में मित्रता हो जाने से, एक अवकाश के दिन, जीवनी जब घर आई हुई थी, तब यशस्वी उससे मिलने आई। उनके बीच बात हो रही थी तभी, मैं जीवनी के कक्ष में पहुँचा था।
मैंने हँसते हुए पूछा था - आप दोनों को आपत्ति न हो तो मैं, आपकी चर्चा का श्रोता होना चाहता हूँ।
जीवनी ने हँसकर कहा - पापा, चर्चा वैसे नारी विषयक है। चलो हम आपको नारी, मानकर अनुमति देते हैं।
इस पर, यशस्वी ने ठहाका लगाया।
इस मजाक से तनिक झेंपते हुए, मैंने कहा - विपक्ष सशक्त लग रहा है अतः चलो मैं, आपके पक्ष में शामिल हो जाता हूँ। (फिर आगे कहा) यद्यपि, शरीर अपेक्षा से नारी एवं पुरुष में भेद है। वस्तुतः मगर, आत्मा के स्तर पर, हम तीनों में कोई अंतर नहीं है।
जीवनी ने कहा - आपने बहुत अच्छी बात कही, पापा। मैं अपनी थीसिस में इसे ऐसे लिखूँगी, "मनुष्य में होने वाली आत्मा एक जैसी होते हुए, शरीर को मुख्य कर नारी एवं पुरुष में, समाज व्यवहार में अनावश्यक ही, बड़े भेद कर दिए गए हैं।"
यशस्वी ने कहा - किसी जीवन के लिए, मुख्य एवं महत्वपूर्ण तथ्य, शरीर में आत्मा का होना है। इसे ध्यान रखते एवं स्वीकार करते हुए, समाज चलन-व्यवहार, शरीर की अपेक्षा, आत्मा को ही मुख्य करते हुए होने चाहिए।
जीवनी ने कहा - बहुत अच्छा कहा है, मैं अपनी थीसिस में, यशस्वी की कही, यह बात ज्यों की त्यों लिखूँगी।
तब मैंने कहा - मैंने आपका विषयांतर करा दिया, आप अपने चर्चा पर वापिस आओ। मैं अब चुप रहकर सिर्फ सुनूँगा।
तब जीवनी ने कहा - पापा, यशस्वी जानना चाहती है कि अभिनेता की पत्नी से साक्षात्कार में, उनके द्वारा क्या कहा-सुना गया है। मैं यशस्वी को यही बताने वाली थी कि आप आये हैं।
मैं सोचने लगा कि यशस्वी, कोई बात भूलती नहीं है। तभी प्रिया भी आ गईं और उन्होंने, चल रहे डिस्कशन में मूक श्रोता रहने का इशारा, अपने होठों पर अँगुली रखकर किया। हम सभी ने हँसकर उनकी इस अदा का आनंद उठाया। तब जीवनी ने कहना आरंभ किया :-
"अभिनेता पत्नी रौशनी जी के दिए वक़्त पर मैं, उनके बँगले पर पहुँची थी। सामान्य शिष्टाचार के आदान-प्रदान के बाद मैंने, जल्दी मुद्दे पर आते हुए, उन्हें उनके अभिनेता पति का इंटरव्यू (यशस्वी-10 में) दिखाया था। जिसे, उन्होंने बताया था कि उनका, पहले ही पढ़ा हुआ है। तब मैंने पूछा, आपने जब अपने पति से उनके अवैध संबंधों पर प्रतिकार किया, तब उन्होंने आपको भी, उनके जैसे अवैध संबंधों में, लिप्त होने को प्रोत्साहित किया जिसमें दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आप आ गईं, क्या यह सच है?
रौशनी ने बताया - यह पूर्ण सच नहीं है।
जीवनी उत्तर से चौंकी थी, प्रश्न किये - तो सच क्या था? और क्या आपने, अभिनेता पति को सच बताया था?
रौशनी - मैं, पति की अति व्यभिचारी प्रवृत्ति से दुखी रहती थी। अतः उनके सामने ऐसा अभिनय करते रही कि जैसे उनकी बेवफ़ाई के बदले में, मैं बेवफ़ाई करती हूँ। जबकि सच यह था कि मैं, उनसे शादी के पूर्व से अभिनेत्री थी तथा कास्टिंग काउच निर्माता एवं सह-अभिनेताओं के द्वारा, शादी के पहले ही शोषित की जाती रही थी।
और शादी के बाद भी मेरी दुर्भाग्यपूर्ण नियति यही रही थी। अगर मेरे पति अपने काम के बाद अपना समय मुझे दिया करते तो मैं, सिनेमा में काम करना छोड़, उनके लिए समर्पिता रहने का विकल्प चुनती। पति की सिनेमा में एवं बाद के वक़्त में, अपने व्यभिचार में लिप्तता से मेरा मन क्षुब्ध रहता था। मैं फिल्मों में काम करती रही तथा कास्टिंग काउच मेरे साथ अपने ख़राब मंतव्य सिद्ध करते रहे।
जीवनी ने फिर पूछा - आप यह कहना चाहती हैं, ऐसे संबंध आपके दैहिक जरूरत नहीं थे ?
रौशनी ने कहा - बिल्कुल भी नहीं, मुझे यह लगता है कि अपवाद को छोड़ दें तो किसी पत्नी के लिए अपने पति से मिलता शारीरिक सुख भी, उसकी जरूरत से अधिक होता है। कोई स्त्री इस सुख के लिए भटकती नहीं है। अपितु यह, पुरुष का ही निंदनीय काम होता है जो नारी को जबरन इसमें लिप्त करता है। उसे ब्लैक मेल करता है।
जीवनी - क्या सिने जगत में, पुरुष एवं नारी ऐसे ही हैं?
रौशनी - नहीं, किसी का ऐसा कहना, अच्छे तरह के नर -नारी के प्रति अन्याय होगा।
जीवनी - कुछ ब्लैक मेल के मामले तो, औरतों के द्वारा किये जाते, भी देखने में आते हैं ?
रौशनी - उनका भी पूरा सच सामने आये तो आप देखोगी कि उसमें भी, कोई पुरुष ही अपनी लोलुपता में, औरत का उपयोग करते हुए, उससे करवाता है?
जीवनी - वेश्यालयों में तो देह व्यापार कराने में, औरत ही प्रमुख देखी जाती है।
रौशनी - तुम छोटी हो इसका सच भी, तुम नहीं जानती हो। फिर भी चलो मैं, मान लेती हूँ। तब भी कुछ अपवादों को लेकर, तुम्हारी थीसिस में कोई निष्कर्ष निकालना, क्या उचित होगा? औरतों की, कितनी आबादी वेश्या होती है?
जीवनी ने पूछा - आपका दैहिक शोषण होता रहा, जानते हुए भी इस पर आपने विद्रोह नहीं किया। अपने ऐसे करने को आप, अच्छा कैसे ठहरा सकती हैं ?
रौशनी - यह अच्छा कभी था ही नहीं। बस मैं, इसको उजागर करने का साहस तब, नहीं जुटा सकी। तब नारी को लेकर समाज में सोच, आज जितनी सुलझी नहीं थी। समाज दृष्टि, धूर्त पुरुषों की सब बुरी करनी को अनदेखा कर देती एवं मेरे व्यक्तित्व पर सारा कालिख पोत देती।
जीवनी - मगर ऐसे घुट घुट कर जीना, क्या जीवन है?
रौशनी - मेरे ही नहीं, अधिकाँश औरतों के जीवन में, ऐसी दुःखद घुटन समाज वास्तविकता है। यह, आज के पहले इससे भी विकट थी।
जीवनी - कैसे बदलेगी यह कटु नारी जीवन विडंबनायें ? आप क्या सोचती हैं, कभी बदल सकेंगी भी या नहीं ?
रौशनी - जिस दिन पुरुषों को, नारी जीवन के दुःखद सभी पहलू, गंभीरता से दिखाये जायेंगे और उन्हें विवेक जागृत कर विचार करने को बाध्य किया जाएगा। निश्चित ही बदल सकेंगी।
जीवनी - अपनी तरफ से कोई उदाहरण रख, आप समझाना चाहेंगी?
रौशनी ने (सोचते हुए कहा) - मैं सोलह सत्रह साल की थी तब एक कवि सम्मेलन सुन रही थी। उस दौरान तब दर्शक/श्रोता दीर्घा में कुछ हलचल सी हुई थी। माइक पर कविता पढ़ रहे, कवि महोदय को इससे चिढ हुई, उन्होंने कहा, क्या मेरे पिताजी, यहाँ भी आये थे?जिस पर लक्ष्य कर कवि ने यह बात कही, उस पुरुष ने चिल्लाकर कहा, नहीं मेरे पिताजी, तेरे घर गए थे। माइक पर नहीं कहे जाने से इसे ज्यादा ने नहीं सुना था। कवि ने पुरुष श्रोताओं की वाहवाही लूट ली थी।
जीवनी ने कहा - मेम, मुझे समझ नहीं आया ?
रौशनी ने कहा - तब, इसमें निहित गूढ़ार्थ मुझे भी समझ नहीं आया था। कवि ने यह फूहड़ हास्य, इसमें अपने पिता की मर्दानगी दिखाने के लिए किया था। और नारी के चरित्र को लाँछित किया था। जबाब में कहने वाले पुरुष ने भी यही किया था। दोनों ने ही, एक दूसरे की माँ को लाँछित करते हुए अपने पिता की जगह जगह अवैध संतान पैदा करने के काल्पनिक काम को, गौरव गाथा सा कहा था। अर्थात बात ऐसी कुछ थी ही नहीं, मगर हर बात में नारी को घसीट कर लाँछित करना, हमारे समाज में शर्मनाक सच्चाई है।
जीवनी ने पूछा - इस दुःखद समाज सच्चाई का, नारी जीवन पर प्रभाव कैसे पड़ता है?
रौशनी - बात बात में लाँछन से, नारी आजीवन बचाव मुद्रा में रहती है। बहुत से पुरुष, ऐसा आक्रामक व्यवहार करते हुए, शारीरिक एवं मानसिक रूप से नारी पर सदैव दबाव बनाये रखते हैं। वे ऐसी परिस्थिति निर्मित करते हैं कि अपने दोषपूर्ण कर्मों के लिए भी, नारी ही, आत्म-ग्लानि अनुभव करने के लिए मजबूर रहे।
ऐसे पुरुष अपने ईगो तुष्ट करने की कोशिश में, (भ्रम)गर्व से प्रचारित करते हैं कि उनने, अनेक औरतों को भोगा है। जिस दिन ऐसे (भ्रम)गर्व से नारी, यह कहने लगेगी कि मैंने इतने पुरुष को भोगा है, उस दिन ऐसे पुरुष आक्रामकता छोड़, बचाव मुद्रा में आ जाएगें।
जीवनी - क्या, आप कास्टिंग काउच से मजबूर हो किये अवैध संबंधों को गर्वबोध में, ऐसे कहेंगी कि आपने पचास पुरुषों को भोगा है ?
रौशनी - नहीं, कोई नारी ऐसा कहे, यह मेरा अभिप्राय नहीं है। पुरुषों को इस पर विचार के लिए ऐसा कहा है कि नारी, यदि ऐसे शर्मनाक दावे करने लगे तो उन्हें कैसा लगेगा? जबकि नारी ही उनकी माँ, बहन, पत्नी और बेटी होती है।
जीवनी - मेम, आपने बहुत ही तार्किक बातें रखीं हैं। आपके उल्लेख से यदि मैं, इन सारी बातों को, अपनी थीसिस का अंश बनाऊँ तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी ?
रौशनी - नहीं जीवनी, अगर कुछ भी पुरुष इन पर विचार करें और, अपने आचार व्यवहार तथा कर्मों में सुधार लायें तो अपने सच को स्वीकार करने से, मेरी बुरी करने का प्रायश्चित हो जाएगा।
जीवनी के सब बताने के बाद, यशस्वी बहुत प्रभावित हुई थी।
यशस्वी ने कहा कि - मेरे काम के बाद में, मेरे विचार भी नारी दशा और उसके सुधार को लेकर चलते हैं। जीवनी से मिलती संगत, इस दृष्टि से अत्यंत लाभप्रद है।
जीवनी ने प्रशंसा के लिए यशस्वी का आभार माना था। मैं और प्रिया भी, जीवनी के डॉक्टरेट होने की प्रक्रिया में, उसके वैचारिक एवं तार्किक क्षमताओं के बढ़ते स्तर से अत्यंत आनंदित थे।
फिर, साथ चाय लेने के बाद यशस्वी चली गई थी ...