Manju Singhal

Abstract

4.4  

Manju Singhal

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ये उन दिनों की बात है

ये उन दिनों की बात है

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यह उन दिनों की बात है जब टेलीविजन ने भारत के बाजार में दस्तक दे दी थी । टीवी ब्लैक एंड वाइट था साथ में 10 - 12 रोड वाला लंबा सा एंटीना था जिसे घर की पर लगाया जाता था । साहब वह एंटीना ही नहीं था बल्कि स्टेटस सिंबल था । जिस घर की छत पर एंटीना होता था उस घर के लोग माननीय कहलाते थे । तब हम लोगों की गर्मियों की छुट्टियां मेरठ में अपनी मौसी के घर गुजरती थी । मौसी मौसा पैसे वालों में शुमार होते थे । उनकी बड़ी सी सुंदर कोठी थी । मिलनसार इतने थे की सारा मोहल्ला ही उनका अपना था । सभी लोग बहुत प्यार करते थे वह इज्जत देते थे । मौसी बहुत शौकीन थी । लिहाजा मोहल्ले का पहला टीवी उनके घर आया । उस समय टीवी पर केवल दूरदर्शन आता था । बुधवार को चित्रहार और रविवार को फिल्म आती थी । बड़े आकर्षण के विषय थे । पूरी बिल्डिंग और पूरे मोहल्ले ने स्वाभाविक रूप से उस पर अपना हक समझा । तो टीवी देखने आना उनका हक था । शाम से पहले टीवी देखने की तैयारियां शुरू हो जाती थी । 

उन दिनों गैस तो थी नहीं अंगीठी जलती थी । शाम को अंगीठी जलाकर जल्दी-जल्दी रात का खाना बनाकर रखा जाता था ताकि टीवी देखने में रुकावट ना आए । सारे बच्चे मिलकर भाग भाग कर कुर्सियां, मुंडे, स्टूल लाकर कमरे और बाहर बरामदे तक पिक्चर हॉल सा बना देते थे । शाम को दूरदर्शन की धुन बजते ही प्रसन्न मुख हंसते मुस्कुराते चेहरे गेट में आते और अदम्य उत्साह से भरे अपनी-अपनी सीटों पर जम जाते । सामूहिक रूप से प्रोग्राम देखे जाते । ऐड ब्रेक में सभी भागते कुछ खाने को कुछ पानी पीने को कुछ भी करना हो उसके लिए । क्या दृश्य होता था । पिक्चर या प्रोग्राम खत्म होने पर हंसते बोलते अपने-अपने घर जाते हम कुर्सियां स्टूल उठाते पर यह कभी नहीं लगा की यह टीवी सिर्फ हमारा है । सभी के साथ प्रोग्राम देखने में जो आनंद आता था वह आज मल्टीप्लेक्स का महंगा टिकट खरीद कर एसी हॉल में बैठकर पिक्चर देखने में नहीं आता । पर अब वो आनंद कहां ।

 यह उन दिनों की बात है ।



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