पतझड़
पतझड़


शुष्क हवाएं चलने लगी है, पेड़ों ने पीली चूनर ओढ़नी शुरू कर दी है। लगता है पतझड़ का मौसम आ गया।
पतझड़ का नाम आते ही शुष्क हवा वाले उस मौसम की याद आती है जिसमें सारे पेड़ पौधे अपने पीले पत्तों को अपने से अलग करके हवा में उड़ा देते हैं। कुछ लोगों को यह मौसम बहुत उदास लगता है पर पर गौर करें तो पाएंगे असल में यह मौसम एक नए जीवन की शुरुआत का है। हवा चलती है तो पूरा वातावरण पीले पीले पत्तों की अठखेलियां से भर जाता है। हवा के तेज झोंके के साथ तरह-तरह के वृक्षों की पत्तियां मानो हवा के पंखों पर नाचती हुई नीचे आकर चारों तरफ एक पीला गलीचा बना लेती हैं। हवा में तैरती उन पीली पत्तियों का नीचे गिरना मन को खुशी से भर देता है। सड़क पगडंडी , छत सब पीले पत्तों से भर जाती हैं। जंगलों में की पत्तियों का मोटा गलीचा बन जाता है जिस पर चलने में जो आवाज आती है वह जंगल के सन्नाटे में संगीत की तरह सुनाई देती है।
हर जगह पत्तों से विहीन नंगे पेड़ खड़े दिखाई देते हैं जिनमें अभी भी कुछ पीले पत्ते लगे होते हैं। तरह-तरह के आकार के यह पत्र विहीन पेड़ चित्र लिखित से दिखाई देते हैं मानो किसी चित्रकार ने अपनी कूची रंग में भिगोकर चित्रकारी कर दी हो।
जरा गौर से देखिए सभी शाखों पर नन्ही नन्ही धानी रंग की रेशमी कोपलें भी फूट रही होती हैं और धीरे-धीरे पूरा पेड़ धानी रंग में नहा जाता है। यही धानी पत्तियां नवजीवन का संदेश देती हैं की पतझड़ के बाद नया जीवन अंगड़ाई ले रहा है और यही तो है जीवन का सौंदर्य है। पतझड़ के बाद ही तो बसंत है, सौंदर्य है, जीवन है जो निरंतर चलता रहता है।