ऋतुराज वसंत
ऋतुराज वसंत
पतझड़ की बात हो और बसंत की बात ना हो तो बात अधूरी लगती है । सर्दी रानी अपनी गठरी में कोहरा, ठंड और ठिठुरन बांधकर विदा हो गई है । मरी मरी सी निस्तेज धूप में जान आ गई और दिन चमकीले और रातें गुनगुनी हो गई हैं । लगता है किसी अज्ञात चितेरे ने अपने सारे रंग पृथ्वी पर बिखेर दिए हैं और इन्हीं रंगों में घुला मिला है उल्लास का रंग जिससे लगता है मानो सारी प्रकृति ही मुस्कुरा उठी है ।
सुगंधित बहती मंद बयार मैं फुसफुस आहट सी है की लो आ गया है बसंत” ।आ गया है ऋतुराज बसंत । यह समय है ज्ञान की देवी सरस्वती की साधना का, पीली सरसों का, आम के बौर का, कोयल की कूक का, फूलों का, रंगों का जिनसे सारी प्रकृति इंद्रधनुष के रंग में रंग गई है । वृक्षों ने धानी चुनर ओढ़ ली है और सभी वृक्ष और पौधे फूलों से भर गए हैं । कभी कभी प्रकृति की कारीगरी पर आश्चर्य होता है कितने रंगों के, इतने आकारों के और इतने सुंदर फूल होते हैं कि किसी अज्ञात शक्ति के आगे सिर नतमस्तक होता है की कौन रच रहा है यह सुंदर और अद्भुत रचनाएं । फूलों पर मंडराती तितलियां, शहद इकट्ठा करती मधुमक्खियां, मधुर गुंजन करते भंवरे प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं । पुष्प प्रेमी भंवरा” कभी कवियों का प्रिय पात्र होता था आज की पीढ़ी ने तो शायद नाम भी ना सुना हो देखने की तो बात दूर है पर है वह वसंत का महत्वपूर्ण पात्र जो वसंत को सार्थक करता है ।
वसंत में कभी राजस्थान की तरफ जाइए तो सड़क के दोनों ओर दूर-दूर तक सरसों के फूलों की पीली चादर बिछी होती है । खेतों के बीच छोटे छोटे काले पहाड़ सिर उठाए खड़े रहते हैं जिन पर ए का झोपड़ी बनी होती है , कुछ बकरियां चल रही होती हैं और सड़क के किनारे चौड़ा गोटा लगी चटक रंगों की घाघरा चोली में महिलाएं लाइन से जा रही होती हैं । पूरा दृश्य ऐसा लगता है जैसे चित्रकार ने आकाश के कैनवस पर चटक रंगों से दृश्यों को सजीव कर दिया है । सब कुछ अद्भुत लगता है, सच में क्या प्रकृति इतनी सुंदर हो सकती है की आंखों में ना समाए । कोयल अमराई मैं लौट आई है और उसकी मीठी कुक कानों में रस घोल रही है कह रही हो उत्सव मनाओ ऋतुराज वसंत आ गया अपनी पूरी गरिमा के साथ और पूरे यौवन के साथ । सब कुछ कितना मनमोहक है!
