मां, तुम कुछ दिन और ना जाती
मां, तुम कुछ दिन और ना जाती
मां तुम्हें गए हुए 14 साल हो गए पर मन आज भी यह बात मानने को तैयार नहीं है. 14 सालों में 1 दिन भी ऐसा नहीं बीता है जब मैंने तुम्हें टूटकर याद ना किया हो. 1 दिन भी अपने अपराध बोध से नहीं निकल पाए हैं क्यों तुम्हें हॉस्पिटल एडमिट करा कर मैं किसी काम से घर आ गई थी. तुम मानो मेरे जाने का इंतजार ही कर रही थी. चिड़िया की तरह फुर्र से उड़ गई. मेरे लौटने का 10 मिनट भी इंतजार नहीं किया. क्यों मां क्यों मन बस हर समय बीती बातों को याद करता है.
मेरी शादी के बाद मेरे मायके आने पर तुम खुश होकर कहती अरे आ गई तू? तुम्हारे चेहरे से खुशी टपकती. तुम्हारे हाथ का अचार पराठे टमाटर की मीठी चटनी हलवा कितनी पसंद थी मुझे. पूरे घर में हर जगह तुम घूमती फिरती हर जगह दिखाई देती थी. हर जगह तुम्हारी आहट सुनाई देती थी. तुम घर की रौनक थी.
उस समय नहीं पता था की तुम्हारी छोटी से छोटी बात इतनी याद आएगी? जब मैं मायके से लौटने लगती तुम व्यस्त हो जाती तमाम तरह की चीजें इकट्ठे करने में. छोटी-छोटी पोटलिया बनाती. यह आम का मीठा अचार है तुझे बहुत पसंद है, यह घर के बने आलू के पापड़ हैं, घर के पेड़ के अमरूद हैं टोकरी में रख दिए हैं. बच्चों के लिए चूर्ण. मुरमुरे की टिकिया मठरी और भी न जाने क्या-क्या? मैं कहती कि ये क्या ढेर सारी पोटलिया इकट्ठे कर दी हैं मैं नहीं ले जाऊंगी. पर तुम कहां मानती थी, सब कुछ रख देती.
जिंदगी की भाग दौड़ में समय निकलता गया. फुर्सत कम होती गई. नौकरी और गृहस्ती के बीच भागती रही. सोचती थी कि कभी तुम्हारे पास बैठकर बहुत सारी बातें करूंगी. पर वक्त कहां मिला? तुम चली गई. सभी बातें अनकही अनसुनी रह गई.
मायके अभी भी जाती हूं, भाई भाभी भतीजे भतीजे सब बहुत प्यार से रखते हैं पर मन का कोई कोना सूना ही रहता है. वापस लौटते समय भाई पैकिंग करवा कर फल मिठाई शगुन सब देते हैं. पर गाड़ी में बैठते बैठते भी आंखें आंगन के कोने कोने को तलाशती हैं शायद मां पोटलिया बनती दिख जाए. पोटलिया में सिर्फ अचार पापड़ ही नहीं होते थे वह तो तुम्हारा प्यार होता था जो मुझे तुम्हारे जाने के बाद समझ में आया. आंखों से आंसू टपकने लगते हैं.
मां काश तुम कुछ दिन और ना जाती. कुछ कहती कुछ सुनती पर कुछ दिन और ना जाती....