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Abstract

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ये भी कोई रिश्ता है ?

ये भी कोई रिश्ता है ?

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बहनों, अगर तुम लोग सास-बहू सीरियल से फ्री हो गए हों तो मेरी भी कहानी पढ़ लो ? पढ़ने से पहले एक चेतावनी सुन लो। मैं तमिल भाषी हूँ और मुझे हिन्दी में लिखना नहीं आता। कहानी पढ़ते समय आप ये मत सोचना कि मैं राज भाषा का मज़ाक उड़ा रही हूँ, प्लीज, माफ़ कर देने मुझे अगर 'का' की जगह 'की' हो गयामेरे फ्लैट के सामने श्याम और उसकी पत्नी शीला का फ्लैट है। उनके दो बच्चे भी हैं और शादी हुए कॉफी साल हो गए, ऐसा मुझे लगता है। वैसे तो मैं दूसरों के मामलों में दख़ल देती नहीं हूँ, पर क्या करें, कभी-कभी न चाहते हुए भी इधर-उधर की बातें सुन ही लेती हूँ।

तुम लोगों के सात भी ऐसा ही होता होगा ना ? क्या कभी तुमने इस बात पर गौर किया कि लोगों के भीतर कितना गुस्सा और फ़्रस्ट्रेशन भरा हुआ है ? हर किसी को कोई ना कोई प्रॉब्लम होता ही है। मुझे ही ले लो; उम्र ज़्यादा कुछ नहीं पर लगता है उम्र से ज़्यादा रोग लग गए. शुगर तो है ही; किसको नहीं है आज-कल, साथ ही ब्लड प्रेशर हाई है, माइग्रेन से सर फटता है, कब्ज़ कम्बख्त जीने नहीं देता। इन सब के अलावा दिमाग में ये कीड़ा लोगों की बातें सुनने का! पता नहीं, ऐसा क्यों है मेरे साकिसी से दो बातें करना बुरी बात तो नहीं। मैं बाज़ार, सड़क, अड़ोस-पड़ोस हर जगह जाती हूँ तो कोई न कोई बात करने वाला टकरा ही जाता है ? और बातें भी क्या ? फ़िजूल की बातें होती हैं। किसी से लेने एक न देने दो, बस उनकी फ़ालतू की बातें सुनो जी! लोग भी ना, ऐसा लगता है कि इंतज़ार करते हैं किसी को पकड़ने की और अपनी बातें उगलने की! मैं तो चुपचाप लोगों की बातें सुनती हूँ। तुम ये मत समाज लेना कि मेरा नेचर ही कुछ ऐसी-वैसी है।

पर इतना दुःख-दर्द दिया है भगवान ने हम सब को और सुनने वाला ढूंढे तो ना ममुझे लग रहा है कि मैं कहानी से भटक गई हूँ। श्याम और शीतल के बीच रोज़ाना झगड़े होते ही रहते हैं। मैं भी उनकी बातें सुनकर थक-सी गयी हूँ। पता नहीं इतने टॉपिक कहाँ से मिलते हैं उन्हें ? तुम पूछोगे कि मैं फिर सुनती ही क्यों हूँ उनकी बातें ? वैसे तो घर पर तुम पंखा, टीवी, फ्रिज, बत्ती स्विच ऑफ कर सकते हो, पर क्या कभी कांनो को कभी तुमने स्विच ऑफ किया है ? फ्लैट भी तो ऐसे बने हैं जैसे दीवार नहीं पेपर हों। उधर क्या-क्या बातें होती हैं सब कुछ तो सुनाई देता है, तुम कर ही क्या सकते हो ?

वैसे तो मेरे हॉल से साफ़ नहीं सुनाई देता, पर बेडरूम से तो इतना साफ़ की जैसे स्टीरियो स्पीकर लगे होकुछ भी कहो, पति-पत्नी के झगड़े ना हो तो शादी-शादी नहीं। पर ये तो कुछ ज़्यादद्ति हो गयी। मेरा ऐसा अनुमान है कि शीतल की परेशानियाँ कुछ ज़्यादा हैं, श्याम से। अक्सर नोट किया मैंने की शीतल शुरुआत करती है और ये भी देखा कि अपने सास-ससुर, देवर-ननद की बातों से ही शुरुआत होती हैआज भी वही हाल लग रहा है, खूब बहस बाज़ी हो रही है। मैं तो बेडरूम से निकलकर फ्लैट के गेट पर कड़ी हूँ, पर आज तो स्पीकर कुछ ज़्यादा ही तेज़ है। मैं सोच ही रही थी की कहीं बहार जाकर थोड़ा टहल आऊँ कि अचानक शीतल के फ्लैट का दरवाज़ा ज़ोर से खुला और शीतल रोते हुए बाहर निकली। मैं झट से घर के भीतर घुस गयी और सोफे पर बैठ गयी। कहीं शीतल को ये ना लगे कि उनकी बातें सुन रही हूँ। इतने में घर की घंटी बजी और क्योंकि दरवाज़ा खुला ही था, शीतल धंधानते हुए मेरे घर के भीतर आ"दीदी, अब मेरा उस घर में, उस राक्षस के साथ रहना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है।"

ये डायलॉग किसी फ़िल्म का लगा मुझे, पर जाने दो।

"शीतल ? क्या हुआ बच्ची ? क्यों रो रही हो ?"

"सब ख़तम हो गया दीदी। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। क्या करूँ मैं दीदी ? कहाँ जाऊँगी मैं ?"

शीतल को सोफे पर बिठाया और एक गिलास पानी दिया। बेचारी की हालत बहुत ही खराब लग रही है। कहीं श्याम ने मार-पिटाई तो नहीं कर दी ?

"बेटी शांत हो जाओ, डरो मत, मैं हूँ ना ? कुछ नहीं होगा तुझे, मैं तेरे लिए चाय लेकर आती हूँ।"

चाय पिलाई तो शीतल कुछ शांत हुई और अपनी बात बताने लगी। अब तुम ही बोलो, क्या मैं उसे चुप रहने को कह सकती थी ?

"दीदी, शादी के पच्चीस साल हो जाएंगे मई में, पर एक दिन का सुख भी नहीं देखा मैंने।"

"ऐसे नहीं बोलते शीतल, शादी में छोटी-छोटी बातें तो होती ही रहती हैं।"

"हाँ दीदी, पर अब बात छोटी नहीं है।"

"क्यों ? ऐसा क्या हो गया ? तुम्हारी तो लव मैरिज हुई थी ना ?"

"हाँ दीदी पर लव तो शादी से पहले था, शादी के बाद तो मैरिज ही रह गया।"

"पगली, प्यार कभी मरता नहीं, बस हम ही निभा नहीं पाते।"

ये डायलॉग भी कुछ फ़िल्मी लग रहा है मुझे। तुम लोगों ने कभी गौर किया की फ़िल्मों का हमपर कितना असर है ? खैर मैं भी क्या बोल रही हूँ, बेचारी शीतल को बोलने दे ना।"आप को पता नहीं दीदी मैं किस नरक में जी रही हूँ। अफ़सोस तो यह है कि इसे मैंने ही चुना, किसी को क्या दोष दूँगी ? शादी से पहले चार साल तक हमारा रोमांस चला, अच्छी-अच्छी बातें करता था, बहुत प्यार देने का वादा करता था। फिर मुझे उस घर में छोड़कर चला गया दीदी। वहाँ इंसान नहीं, हैवान रहते थे, मेरे सास और ससुर। एक तो श्याम ने उनकी मर्ज़ी के खिलाफ मुझसे शादी कर ली, फिर नयी और बेहतर नौकरी के पीछे घर और शहर छोड़कर भाग गया, शादी के बस तीन ही महीने बाद।"

बहनों, एक बात तो सच है। ये आदमी लोग भी ना! इनको तो बस अपनी ही चिंता लगी रहती है, हर वक़्त। पता नहीं क्यूँ ये सब करियर और पैसे के पीछे भागते रहते हैं ? और इनसे हासिल भी क्या होता है ? घर की औरत दुखी रहती है और घरवाले भी दुखी! आदमियों को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए, टाइम पास के लिए कोई भी औरत के पीछे लग लें, ज़िंदगियाँ तो बर्बाद नहीं होंगी ? वैसे मेरा मर्द ऐसा नहीं है, कहीं तुम लोग ये मत समझ लेना की हर मर्द शाम है।"दीदी, सोचों तो दो साल मैंने कैसे काटे होंगे ? एक तो घर नया, तौर-तरीके नए, लोग खड़ूस और हर वक़्त मुझे काटने को दौड़ते थे। और फिर ठीक नौ महीने में निम्मी पैदा हो गयी! सोचों दीदी सोचों।"

अरे मैं क्या सोचूँ ? सोचना तो तुम्हें चाहिए था ना ? क्या सोचे बिना चार साल रोमांस कर लिया ? चलो किया, हो गया, पर नौ महीने में बच्चा ? बहनों, तुम ही बोलो, पढ़े-लिखे लोग क्या यह नहीं समझते की सेक्स और बच्चा पैदा करना अलग-अलग चीज़ होती है ? लोग भी ना, कैसी-कैसी ग़लतियाँ कर बैठते हैं ?"श्याम तो चला गया, कलकत्ता और मैं यहाँ उन हैवानों के बीच पिसती रही। कितने कोशिश किये मैंने उन लोगों का दिल जीतने के लिए. खाना-पीना बदला, उठना-बैठना सीखा।होंठ-सी लिए मैंने; पर वे लोग तो ठस से मस नहीं हुए. उधर श्याम अपने पूज्य माता-पिता से कुछ कहना तो दूर, मुंह तक खोलने को तैयार नहीं ? दीदी, आप ही बोलो, पति का पत्नी लिए कुछ फ़र्ज़ बनता है कि नहीं ?"

मेरे 'वो' भी तो बैठे रहते हैं ऐसे ही, क्या बोलूं ? मैंने कहा ना सब मर्द एक ही जात के होते हैं। अब तुम पूछोगी मर्दों की जात ? एक्चुअली ना, तुम सही हो। मर्दों की कोई जात होती ही नहीं। बेचारी शीतल को देखो ना ? भला कोई पति ऐसा भी करता है क्या ? मेरे 'वो' भी मर्द है, पर मुझे तो कभी नहीं अकेले छोड़ा ? वह तो मेरे अंदर ऐसे घुसे पड़े हैं कि कभी-कभी सोचती हूँ कब पीछा करना छोड़ेगा ? पर मुझे ग़लत मत समझना, हाँ ? यह सब प्यार से वह करता है। श्याम की तरह नही"दीदी, जब भी उसको बोलती थी की तुम्हारे पेरेंट्स ऐसा कर रहे हैं, वैसा कर रहे हैं, तो पता क्या बोलता था ? बोलता था तुम्हें हैंडल करना नहीं आता। तुम भी जवाब दो उनको! भला यह भी कोई सलूशन है क्या ? मैं सब कुछ छोड़कर उसके साथ उसी के घर आ गयी और यहाँ मैं ही बुरी बनूँ ? ये क्या इन्साफ़ है दीदी ?"

औरतों की तो दुर्दशा है, हर हाल में। मेरा पति भी तो। बच्चे कुछ भी करें, उन्हें कुछ बोलेंगे नहीं। वह काम मुझे ही करना है। क्या बोलते थे बच्चे मुझे "गुड डैड, बेड मोम"। लो हो गया ना काम, खुद तो बिगाड़ने में लगे थे और बुरी मैं। ये आदमी लोग भी ना, फैसले लेने को बोलो तो भाग खड़े होते हैं! सारे फैसले हमारे और बुरे भी हम। पर झूठ क्यों बोलूं, मेरा पति भी फैसले लिया तो करता है।"शीतल, देखो, ऐसे तो कहानी तुम्हारी मैं समझ रही हूँ, पर बेटी, श्याम ने तुम्हारे साथ जो बर्ताव किया है तो तुमने कुछ भी नहीं किया उसे रोकने के लिए ? तुम्हारा भी मायका है, रिश्तेदार होंगे, किसी ने उसे समझाया नहीं ?"

"दीदी क्या मायका और क्या रिश्तेदार ? अपने परिवार में सबसे बड़ी हूँ मैं। पिताजी तो पहले ही गुज़र गए, माँ को क्या बोलूं ? वह तो वैसे ही परेशान रहती थी, पांच बच्चे अकेले पालना मज़ाक है क्या ? आज के दौर में रिश्तेदारों से क्या उम्मीद ? हम खुद भी उनसे कटे पड़े थे"एन जी ओ, पुलिस ? स्त्रियों को घरेलू अत्यचारों से बचाने के लिए तो आजकल बहुत कुछ हो रहा है ?"

"दीदी क्या हो रहा है ? ये सब तो आदमियों का रचा हुआ प्रपंच है।"

"बताओ शीतल, मैं क्या मदद करूँ तुम्हारी ? बोलो, मैं हेल्प करुँगी। श्याम से बात करूँ ?"

"क्या फ़ायदा दीदी ? वह तो बहुत चतुर है, आपको कन्विंस कर देगा की मैं बुरी हूँ और समस्याओं का जड़ मैं ही हूँ।""देखो शीतल, अगर तुम कुछ नहीं करना चाहती हो और किसी से मदद भी नहीं लेना चाहती तो-तो समस्या का समाधान कैसे होगा ? तुमने चुप रहकर ठीक नहीं किया, जिसका कोई नहीं उसका ख़ुदा तो है ?"

फिर फ़िल्मी, ये क्या हो रहा है मुझे ? फ़िल्में देखना काम करूंगी, पर आजकल तो इतने चैनल हैं, बचे कैसे ? वह तो नाप-तोलकर बात करते हैं, टीवी भी बंद कर दूँ तो पागल हो जाउंगी।श्याम की कथा

ये मैंने क्या किया ? निकली थी सिर्फ़ सुनने शीतल की कहानी और अब उस कहानी में फस गयी! शीतल ने डायरेक्ट तो नहीं बोला, पर श्याम से बात करने का मेरा आइडिया उसे भी ठीक लगा। मैंने क्यों ऐसे बोल दिया ? किसी का प्रॉब्लम मैंने क्यों ओड लिया ? मैं श्याम से क्या बात करुँगी और कैसे ? शीतल तो मेरे पास आयी, पर श्याम के पास तो मुझे ही जाना पड़ेगा ? मैंने शीतल की दर्दनाक कहानी मेरे उनको सुनाया तो वह बोले 'पद्मा, कितनी बार बोला इधर-उधर तांक-झाँक मत करो। अपने प्रॉब्लम काम हैं क्या ? बेटा तो चला गया हमें अकेला छोड़कर। यू एस ए से वापस थोड़े ना आएगा वह ? तुम्हें उससे बड़ी उम्मीदें हैं, वह आएगा, हमें ले जाएगा। देख लिया ना उसने क्या किया ? शादी कर लिया उसने अमेरिकन के साथ ? अब तुम चले पड़ोसियों का प्रॉब्लम सॉल्व करने! करो। मुझे बीच में मत घसीटबताओ बहनों। एक औरत का दुःख एक औरत ही समझती है, है ना सच्ची बात ? ये मर्द तो मर्द का ही साथ देंगे, आखिर एक ही जात के जो ठहरे ? पर मैंने भी तय ही कर लिया की उस श्याम को आड़े हाथ लूंगी। ज़रा देखें क्या कहता है, क्या करता है ? मुझसे तो बचेगा वह, ऐसा मुझे लग रहा है।ये क्या ? श्याम मेरे फ्लैट की तरफ क्यों आ रहा है ? बाप रे, मैंने तो सिर्फ़ गाउन पहन रखा है, चेंज करना पड़ेगा, क्या लगूंगी मैं ? क्या सोचेगा वह ?

"मैडम अंदर आ सकता हूँ ?"

मैडम ? ये तो बहुत ही फॉर्मल हो रहा है ? पता है, जब लोग इस तरह फॉर्मल होकर बोलते हैं इसका मतलब तुमसे नाराज़ हैं। लगता है श्याम को मेरा टाँग अड़ाना पसंद नहीं।"आओ, आओ, श्याम बेटा, एक मिनट में आयी मैं।"

"क्या पियोगे, चाय या फ़िल्टर कॉफी ?" वैसे तो इसको कुछ नहीं देना चाहिए, मगर घर आये मेहमान से तो ऐसा नहीं पेश आ सकते ना ?

"कुछ नहीं आंटी, अभी चाय पीकर ही आया।"

आंटी ? मैडम से आंटी तक पहुँच गया ? लगता है मन में डर है, मुझे फ़्रेंड बनाने की कोशिश कर रहा है।

"देखो बीटा, ऐसे बात करने की आदत नहीं है मुझे।"

"कैसे बात आंटी ?"

"मेरा मतलब, पर्सनल बात।" क्यों हिचकिचा रही हूँ ?

"आंटी, आप बड़े हो और आप कैसे भी बात कर सकती हो। हक़ से।"क्या बात है ? बीटा बोलता है उसकी ज़िंदगी पर मेरा कोई हक़ नहीं है और एक अजनबी कहता है मुझे हक़ है!

"बात तो तुम्हें पता ही है, शीतल बिटिया बहुत परेशान है।" कैसे कहूँ की परेशानी का कारण तुम ही हो।

"जानता हूँ आंटी, पर क्या करूँ कि उसकी परेशानी दूर हो ? उसका प्रॉब्लम तो मैं ही हूँ ना ? प्रॉब्लम से प्रॉब्लम कैसे सॉल्व होगा आंटी ?"

ये लो ! ये तो साफ बोल रहा है कि समस्या का जड़ यही है!

"अगर ये सच बात है तो तुमने कोशिश की समाधान ढूंढने के लिए ?"

"आंटी, बुरा मत मानना। आपने प्रॉब्लम समझ लिया ?"

"भाई सीधी बात है, तुम उसको सपोर्ट नहीं करते।"

"कैसा सपोर्ट आंटी ?"

"तुम्हारे पेरेंट्स ने उसे तंग किया, तुम चुप रहे। तुम्हारे भाई-बहनों ने उसे इंसल्ट और टार्चर किया, तुम चुप रहे। शादी किया और उसे अकेला छोड़कर चले गए. अकेले वह दो साल तक बच्ची संभाल रही थी, तुम तो दूर देश में जाकर बैठ गए. ठीक से उससे पेश नहीं आते हो, मेरे भी कान हैं और सुनती हूँ; हाथ तक उठा दिया उसपर तुमने, ऐसा वह कहती है। पति ऐसे होते हैं ? प्यार किया था न उससे ? प्यार ऐसे निभाते हैं ?"

मैं अपने पर ही हैरान थी कि मैंने कैसे इतना सब बोल दिया, कहीं मारेगा तो नहीं मुझे ? मेरे वह भी ना। जब चाहिए तब होते नहीं।

"श्याम, मेरी बातों का बुरा मत मानना। मेरे पति भी नहीं हैं इस वक़्त वरना उनका होना अच्छा रहता। लगता है वह भी मुझसे परेशान रहते हैं, भाग जाते हैं घर से और बैठ जाते हैं किसी लाइब्रेरी में। देखो श्याम, अगर तुम मुझसे इस बारे में बात नहीं करना चाहते हो तो मैं समझ जाऊंगी, पर इस तरह शीतल को परेशान देखकर अच्छा नहीं लगा।"

"क्या मुझे अच्छा लगता है ? आंटी आपको जो पूछना है पूछिए, जो बोलना है बोलिये, मैं सुनूंगा और जवाब भी दूँगा।"

"अच्छी बात है बीटा, ये बताओ शीतल का प्रॉब्लम सच्ची में है या वह कुछ ग़लत बोल रही है ?"

"शीतल कभी झूठ नहीं बोलती ऑन्टी. वही बोलती जो सच मानती है।"

"इसका मतलब, शीतल सच बोल रही है ?"

"सच एक उलझा हुआ विषय है। कई तरह के सच हैं ज़िंदगी में, मैं क्या बोलूं आंटी."

"सच तो सच ही होता है बेटा, हाँ हर कोई इसे उलझा ज़रूर देता है।"

"आंटी, सच वही है जिसको आप मान लेते हो। सदियों पहले पृथ्वी का सच अलग होता था पर वह ग़लत साबित हुआ, नहीं ? पर ये कहना भी ठीक नहीं होगा की वह लोग सब झूठे थे !"

"तुम शायद ये कहना चाहते हो कि शीतल जिसको सच मान रही है वह ग़लत है ? तो तुम्हारा सच क्या है ?"

"मैंने सच और झूठ का चक्कर ही छोड़ ही दिया आंटी. ये सिर्फ़ बहस की बातें है। हमारी बातों को ही देख लीजिये ना, क्या आप हम दोनों की बात सुनकर तय कर पाएंगे कौन सच बोल रहा है ?" भाई तुम्हें सुनकर तो टीवी वाले स्वामी जी याद आते हैं। वही दाढ़ी वाले ? इतना अच्छा बोलते हैं कि लगता है सुनते रहो। पर एंड में सोचों तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता। क्या कह रहे थे समझ नहीं आता।"

"आंटी, यही तो मैं भी कह रहा हूँ, चलिए और क्या पूछना है आपको। देखिये मैंने कहा शीतल ने जो भी आपसे कहा मेरे बारे में वह सच है। मैंने उसको सपोर्ट नहीं किया, उसे मारा भी और उसको मानसिक और शारीरिक रूप से टार्चर भी किया। आप उसे क्या सुझाव देंगे ?"

बहनों मुझे इस रावण से बचाओ मेरे 'वो' भी मेरे पास नहीं हैं और इधर श्याम तो मुझे फंसा रहा है अपनी बातों की जाल में। अब मुझे क्या करना चाहिए ? तुम लोग होते तो क्या करते ? मैं तो सोचती हूँ इसे पुलिस के हवाले कर देना ही ठीक होगा।

"मैं होती शीतल की जगह तो भाग जाती। पता नहीं कैसे झेल रही है तुम्हें ? तुम्हें सुनकर तो ऐसा लगता है कि तुम एन्जॉय करते हो शीतल को टार्चर करके."

"आंटी, अगर आपका पति एक बलात्कारी रेपिस्ट होता, आपको प्यार नहीं करता बस आपके होने का फायदा उठता है, आपकी इज़्ज़त नहीं करता और उसके परिवार का कोई भी आपको अपना नहीं समझते। ऐसी सूरत में आप क्या करेंगे ?""श्याम, बस करो।"

" आंटी, मैं क्यों बस करूँ, मुझे आपने ही बुलाया, है ना ? आप शायद सोच रहे होंगे की मैं क्या कहना चाहता हूँ ? शीतल के लिए मैं हैवान हूँ, रेपिस्ट हूँ और मुझसे बुरा कोई नहीं। तो वह इतने सालों से मेरे साथ क्यों है ? मेरे भी दो बच्चे हैं और उन्हें भी शीतल के दुःख का एहसास है। मेरे बच्चों ने मुझे पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया ? क्या वह अपने माँ से प्यार नहीं करते ?

सच तो ये है आंटी कि शीतल को अब भी मुझसे प्यार है और मैं अब भी शीतल से ही प्यार करता हूँ! हम दोनों के पास विकल्प है कि इस सड़ी हुई शादी को ख़त्म कर दें और अपनी बची हुई ज़िंदगी बचा लें। जब प्यार के रिश्ते में नफरत का कैंसर लग जाए तो कोई भी बचता नहीं, सब के सब मर जाते हैं।मैंने हज़ारों बार डाइवोर्स का सोचा, पर फैसला नहीं ले पाया। इस लिए नहीं की मैं डरता हूँ, पर हर बार मुझे शीतल का प्यार रोक देता है। आप पूछेंगे, कैसा प्यार जिसमे प्यार के अलावा सब कुछ है ? यही तो एक अजीब सच्चाई है जिसे शायद मैं शीतल को समझा नहीं पाया !

प्यार हम उसे मानते हैं जो प्यारा दिखे। पिक्चर परफेक्ट प्यार। आंटी, शीतल और मैं एक अजीब जगह पर पहुँच गए हैं जहाँ सब कुछ बदला हुआ नज़र आता है। शीतल मेरे लिए मेरे पसंद का खाना और नाश्ता बनती है, हर छोटा बड़ा काम मुझसे पूछ कर या मुझे बता कर ही करती है। और तो और हम अभी भी एक साथ सोते हैं और सेक्स करते हैं। हमारी दुनिया दो भागों में बाँट गया, एक स्वर्ग और एक नरक। हम स्वर्ग में टहलते-टहलते कब नरक में पहुँच जाएंगे, पता नहीं। सुबह नरक में तो दोपहर स्वर्ग में और रात फिर नरक में। हमारा रिश्ता स्किजोफ्रनिक है। शीतल तो बड़ी आसानी से एक से दूसरी दुनिया में एडजस्ट कर लेती है, पर मुझे तकलीफ़ होती है और इस तकलीफ़ को शेयर भी नहीं कर पाता किसी के साथ। यह रिश्ता मेरी समझ के परे है आंटअब बताइये मुझे क्या करना होगा इस मरे हुए रिश्ते को नार्मल बनाने के लिए. वह तो अपने दुःख बता कर लोगों के सामने रो लेती है, मैं ना बताना चाहता हूँ किसी को न रोना चाहता हूँ किसी के कंदे पर। "

बहनों, सुन लिया ? क्या बोलोगे इसको ? मुझे तो भाई समझ नहीं आ रही है, ठीक दाढ़ी वाले बाबा की बात की। भला ये भी कोई रिश्ता है ? क्या इसे प्यार कहें या क्या कहें ? कोई सुझाव दिमाग में आये तो मुझे ज़रूर बताना।


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