कहानी वाट्स एप्प की
कहानी वाट्स एप्प की
तुम मानो या ना मानो, वाट्स एप्प के बिना ज़िंदगी नहीं, नमक बिना दाल जैसी। जब से वाट्स एप्प आया है मेरी तो ज़िंदगी बदल गयी। सुबह उठते ही मेरा दायाँ हाथ सीधे फ़ोन की खोज में निकल पड़ता है। उठने से पहले एक बार सरसरी नज़र डालती हूँ नोटिफिकेशंस पर कि कोई ज़रूरी मैसेज तो नहीं आया है? वैसे ज़रूरी का डेफिनिशन बदल चुका है, जो मुझे सुबह 4 बजे गुड मॉर्निंग मैसेज भेजती हैं, उनका मैसेज नहीं आया हो तो मुझे चिंता होती है।
चेन्नई में मेरी माँ अब लगभग 90 साल की हैं और वह सुबह 3 बजे उठ जाती हैं। उनके पोते ने उन्हें आई फ़ोन और आई पैड चलाना सीखा दिया और दिन का शुरुआत वह वाट्स एप्प से ही करती हैं। हमारा फैमिली ग्रुप है जिसमे सब बूढ़े, बड़े, जवान और बच्चे शामिल हैं। माँ का मैसेज जिस दिन नहीं आया तो सब उनको फ़ोन करते हैं। इसलिए, वह कभी-कभी मैसेज जान-बूझकर नहीं भेजती। उनके मैसेज भी अजीब होते हैं। अंग्रेज़ी आती नहीं पर मैसेज अंग्रेज़ी में ही लिखेंगे! ये जो मोबाइल का टाइपराइटर है, कभी अर्थ का अनर्थ कर देता है। एक बार तो हद ही हो गयी, सेफ की जगह रेप टाइप हो गया। साथ में माँ फ़ोन में जितने इमोजी होते हैं सब को आजमा लेती हैं! ख़ास तौर से उन्हें फूल पसंद हैं और शिकायत है कि मोगरे का इमोजी नहीं मिला!
वाटस एप्प ग्रुप के बारे में कई किस्से-कहानियाँ हैं। हमारा एक ग्रुप है स्कूल फ़्रेंड का और उसमें करीब पचास दोस्त हैं। प्रॉब्लम ये है कि इनमें से आधे लोग बातूनी हैं जो हर वक्त कुछ न कुछ पूछते या बोलते रहते हैं। कुछ मेरे जैसे लोग फॉरवर्ड ही करते रहते हैं और कुछ केवल सुनते या पढ़ते हैं, बोलते नहीं। कई बार कन्फूशन हो जाता है कि कौन क्या बोल रहा है और जवाब किस सवाल के लिए था? आधे लोग मैसेज ठीक से पड़ते भी नहीं और जवाब लिख देते हैं। एक दोस्त की बहन की डेथ हो गयी और उसका मैसेज आया। उसी दिन एक और दोस्त का जन्मदिन था और लोग बधाई दे रहे थे। किसी ने मैसेज ग़लत समझ लिया और जिसकी बहन की डेथ हुई उसे बधाई संदेश भेज दिया और दूसरी को शोक संदेश। पीछे-पीछे सब ने ऐसे ही मैसेज भेजना शुरू कर दिया।
ग्रुप में झगड़े होना स्वाभाविक है। कभी-कभी तो महाभारत से भी भयंकर युद्ध छिड़ जाती है। एक बार तो ग्रुप में दो लोगों के बीच मोदी और राहुल गांधी को लेकर खून ख़राबा हो गया। कुछ लोगों ने रोकने की कोशिश की तो बात गाली गलौज पर आ गयी। पुराने किस्से और ज़ख्म खुल गए; फिर क्या? दिन भर मारा मारी। उस दिन मैसेज का रिकॉर्ड टूटा होगा, हज़ारों मैसेज ओलों की तरह फ़ोन से बरसने लगे कि मजबूरन मुझे फ़ोन स्विच ऑफ करना पड़ा। बाद में पता चला की दस दोस्तों ने ग्रुप एक्ज़िट कर दिया और पांच को एडमि
न ने निकाल दिया।
ये तो दास्तान दोस्तों की थी, पर फैमिली ग्रुप में भी खूब पॉलिटिक्स होता है। पिछले हफ्ते संगीता रोते हुए मुझे नीचे मिली।
"दीदी, मुझे उसने परिवार से निकाल दिया। अब क्या करुं?"
"क्यों, प्रवीण को क्या हो गया? कुछ झगड़ा हो गया क्या? तुम दोनों तो हैप्पी कपल थे?"
"प्रवीण ने नहीं दीदी, सुरेश ने।"
"सुरेश? पर वह तो तेरा भाई है? वह घर से कैसे निकाल सकता है तुझे?"
"दीदी, आप भी ना, घर से नहीं, वाटस एप्प ग्रुप से मेरे भाई ने मुझे निकाल दिया।"
"ओ, तुम्हारे मायके वाली ग्रुप? क्यों?"
"दीदी, आप तो जानती हो मैं किसी ग्रुप में कुछ नहीं बोलती। घर के ग्रुप में भी नहीं। पर कोई लगातार उलटी-सीधी बात करे और मुझे नीचा दिखाए तो कब तब मैं चुप रह सकती हूँ? बस, मैंने जैसे ही जवाब दिया तो उसने मुझे ग्रुप से निकाल दिया।"
"अरे, और भी लोग हैं ना ग्रुप में? तुम्हारे माता-पिता भी तो हैं? किसी ने कुछ नहीं कहा?"
"किसी ने कुछ नहीं बोला दीदी। मैंने भाई को फ़ोन किया तो वह उठाता नहीं। मम्मी सुरेश का साइड ले रही है और कहती है माफ़ी मांगो। पिताजी ने साफ़ कह दिया की भाई-बहन के झगड़े में वह पड़ेंगे नहीं। बड़ी दीदी कहती है मैं लंदन से क्या कर सकती हूँ, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि झगड़ा किस बात का है? सोचों दीदी, ग्रुप में बच्चे क्या सोचेंगे? मेरी तो बुरी तरह बेइज़्ज़ती हो गयी।"
ये तो हाल है घर का, वैसे घर के कुछ ऐसे सदस्य भी होते हैं जो बोलते कुछ नहीं पर कलेश ज़रूर फैलाते हैं। रीना को ही ले लो। हम लोगों की किटी में उसने बताया की उसने अपने फैमिली ग्रुप तोड़ दिया और बहुत कुश हो रही थी। उसने एडमिन को समझा दिया की ग्रुप में सिर्फ़ फैमिली के सदस्य होने चाहिए, कोई बाहरी सदस्य नहीं। इसका मतलब पति और बहुएँ जो परिवार में बाद में आये ग्रुप के सदस्य नहीं बन सकते। बच्चे बन सकते हैं पर उनके पति-पत्नी नहीं। कुछ बच्चों को भी ग्रुप से निकलवा दिया क्योंकि उसे वह पसंद नहीं थे। और तो और, जब उसकी बहन ने उसका फोटो ग्रुप में डाला (वो परिवार के साथ उनसे मिलने गयी थी) तो वह भड़क गयी। जब उसको पूछा की अगर ग्रुप इतना ही खराब है तो क्यों ग्रुप में हो तो उसने कहा "मैं क्यों जाऊँ? मेरा हक़ बनता है। मुझे हटाकर तो देखो।" आखिरकार एडमिन ने ग्रुप ही बंद कर दिया।
भाई, मैंने तो सोचा था कि वाट्स एप्प से भाईचारा और प्यार बढ़ेगा पर शायद हम इंसान लोग इसे ठीक से नहीं समझ पाये। लगता है झगड़े और ग़लतफ़हमियाँ हमारे खून में है। ना चैन से रह सकते हैं और ना ही चैन से किसी को रहने देंगे।