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ravi s

Abstract

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खइके पान बनारसी वाला

खइके पान बनारसी वाला

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ये मैं नहीं, मेरे पति देव गा रहे हैं, लत जो लगी हैं इनको गुटका खाने की ! मैं तो तुम संग बहस करके हार गयी सजना। मैंने इनसे कहा कि आज मैं सारी दुनिया को बताने वाली हूँ इनके करतूत, तो पता है क्या जवाब दिया ? बोले "तुम क्यों सुनाओगी मेरा दास्तान, लो, मैं ही लोगों को सुना देता हूँ !" तो लीजिये, आज इनके मुँह से ही सुन लीजिये इनकी दर्द भरी दास्तां ! मैं बोलूंगी तो बोलेंगे कि बहुत बोलती है।

दोस्तों, एक बात सुन लो और समझ लो। इंसान की सबसे बुरी बीमारी है आदत और हम सब कोई ना कोई आदत पालते ही हैं। तसल्ली के लिए हमने आदतों को दो वर्गों में बाँट दिया, अच्छी और बुरी। हम सोचते हैं कि अच्छी आदतें हमें बेहतर इंसान बनाती हैं और बुरी आदतें बुरा। मेरी पत्नी को सफाई की आदत है और वह 24 घंटे सफाई करती रहती है। अच्छी बात है, कोई खराबी तो नहीं। पर घर में सब लोग परेशान हैं इस आदत से। मुझे क्या, बच्चों को भी लगता है कि उनकी अम्मा को ओ-सी डी की बीमारी है। एक ही जगह को पचास बार साफ़ करना और क्या हो सकता है ?

चलिए छोड़िये, मैं तो अपनी कहानी सूना रहा था। वैसे बहुत शोध के बाद मुझे अब ये लगता है कि बहुत सारी आदतें हमें अपने माँ-बाप से मिलती हैं, विरासत में कहिये या जेनेटिक्स। मेरे अप्पा 94 साल तक जिए। उनको नसवार की आदत थी। नसवार क्या है ? हाँ, अब तो फैशन नहीं है पर एक ज़माने में पॉपुलर था। तम्बाकू के पाउडर को अपने नाक से खींचकर सेवन करना। ये नसवार है। आज की पीढ़ी को समझाऊँ तो कोकेन ड्रग का जिस तरह नाक से सेवन करते हैं, अब समझे ? हमारे घर में सब को ये बात मालूम थी, पर अप्पा छिप-छिपकर ही करते थे। बात ये है कि उनकी ये आदत (तम्बाकू सेवन की) मेरे जींस (कपडा नहीं) में भी प्रवेश कर चुकी थी।

1982 में मुझे बनारस जाना पड़ा, अपने काम से। करीब दो महीना रहा कशी शहर में। बचपन से ही काशी की महिमा की कहानियाँ सुन रखे थे और मैं खुश था कि मुझे काशी-यात्रा का सौभाग्य मिल गया। लहुराबीर के अजय होटल में कमरा लिया। ऑफ़िस में चौबे जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि काशी के "राँड, साँड़, सन्यासी और सीढ़ी" मशहूर हैं। राँड़ (वेशिया) में कतई दिलचस्पी नहीं थी, वाराणसी की सड़कों पर हर वक्त साँड़ और सन्यासी दिख ही जाते हैं। रही बात सीढ़ियों की, बनारस के घाट मशहूर हैं और वहाँ तो मेरा जाना बनता ही था। साथ में चौबे जी ने मुस्कुराते हुए कहा "साब बनारस आ ही गए हो तो बनारसी पान और भांग ज़रूर खाइयेगा।"

लोग ग़लत समझते हैं कि बनारसी पान को अमिताभ बच्चन ने पॉपुलर किया और डॉन पिक्चर के बाद ही बनारसी पान वर्ल्ड फेमस हो गया। बनारस में पान खाने का रियाज़ सदियों से चला आ रहा है। कहते हैं यहाँ पान वाले बच्चों को मुफ्त में तम्बाकू का पान खिलाते थे, ये सोचकर की जब बच्चे को लत लग जाएगा तो ख़रीदकर खाना शुरू कर देगा !

एक रात को खाना खाने के बाद होटल से निकला और सामने पान वाले के पास चला गया।

"भैया एक पान लगाना तो।"

"जी साब, कैसा खाइयेगा पान ?"

"कौन-कौन से पान हैं ?"

"देसी, बांग्ला, बनारसी, मघई। ..."।

ये तो बड़ा कन्फूजिंग है ! पहले कभी पान नहीं खाया और साउथ में शादियों में देखा पान-सुपारी और खुशबूदार पिंक कलर का चूना। एक बार ज़रूर ट्राई किया था पर अम्मा ने डाँट कर कहा कि बच्चे पान-बीड़ा नहीं खाते। हाँ, पूजा की थाली में पान और मीठी सुपारी के छोटे पैकेट ज़रूर रखते थे।

"साब ? क्या सोच रहे हैं ? क्या खाइएगा ?"

"भाई, बनारसी पान खिला दो।"

पान वाला पान बनाने लगा। एक बड़ा पत्ता पान का लिया जो हरा काम और पीला ज़्यादा दिख रहा था। उसे साफ़ दिया अपने गमछे से और खैंछी से उसके चार टुकड़े किये। चूना और खत्ता लगाने के बाद उसके दो जोड़े बनाये और टूथपिक से पिन कर दिया। एक बडी थाली में रखा और थाली को सजाने लगा। सौंफ, सुपारी, हरी पत्ती, सादी पत्ती, लौंग, इलाइची और तम्बाकू (120 नंबर बाबा) थाली में सजा दिया और थाली मेरी तरफ बढ़ा दिया, बहुत ही भव्य भावना से ,जैसे मंदिर में पूजा की थाली चढ़ाते हैं।

"ये सब खाना पड़ेगा भैया ?"

"पहली बार खा रहे हैं क्या ? जो इच्छा हो ले लीजिये। और कुछ चाहिए तो बोलिये।"

तो ये है मशहूर बनारसी पान, मैंने सोचा। एक बार तो खाना पड़ेगा ही, फिर ना जाने कब यहाँ आना होगा ?

एक-एक करके मैंने सारे पदार्त मुँह में ठूस लिया। अब मुँह भर गया और चबाने की जगह भी नहीं बची थी। जैसे ही खाना शुरू किया तो पान रस छोड़ने लगा और मेरे मुँह से शर्ट पर टपकने लगा। झट से रस पी लिया मैंने शर्ट बचाने के लिए।

पूछो मत आगे क्या हुआ ! एक तीर दिमाग को जाकर लगा और हज़ारों तारे छूट गए। धरती अचानक बहुत ही तेज़ घूमने लगी और मैं अंतरिक्ष में बहुत तेज़ी से उड़ने लगा। दूर कहीं घूमती धरती नज़र आ रही थी और आस पास लाखों तारे। मुझे लगा आज काशी में मेरी ज़िंदगी की आख़िरी रात है, समय से पहले ही मोक्ष । अम्मा-अप्पा को पता भी नहीं चलेगा कि उनके बेटे की मौत कैसे हुई। बीवी और बच्ची क्या करेंगे मेरे बाद ? आखिर बनारसी पान को ही मेरे मोक्ष का कारण बनना था ?

"भैया, साब, उठिए।" मेरे मुँह पर पानी के छींटे डालते हुए पान वाले ने मुझे जगाया। मैं दुकान के पास सड़क पर लेटा हुआ था, ज़िंदा था। कुछ लोग बड़ी बेचैनी से मेरे तरफ देख रहे थे।

"भैया, आप ठीक हो ना ? लीजिये, पानी से खुल्ला कर लीजिये, थूक दीजिए पान।"

जैसे-तैसे मैं होटल के कमरे में घुसा कि बहुत ज़ोर की उलटी हो गयी। मैंने मन में सोच लिया की अब कभी पान नहीं खाऊँगा।

पर मैंने आपको बोला ना, तम्बाकू मेरे जींस (कपडा नहीं) मैं है ? तीन साल बाद लखनऊ में इस सच की पुष्टि हो गयी। मेरा साथी अमरजीत गुटका खाता था, पान पराग और तम्बाकू नंबर 120, मिक्स। दुर्भाग्य से हम लम्बी-लम्बी टूर पर मेरी गाडी से जाते थे। वह कहता था कि तम्बाकू और पान पराग से कॉन्सेंट्रेशन सही रहता है। बस, श्राप जो था मुझपर, मैं भी खाने लगा, बादाम समझकर। और ये सिलसिला अब तक जारी है... छूटती कहाँ ये जो मुँह से लगी ?

वैसे मेरा फ़र्ज़ बनता है कि आपको मैं आगाह कर दूँ। तम्बाकू सेहत के लिए हानिकारक है, इससे कर्क रोग हो सकता है। मैं तो इस आदत को बदलने की कई नाकाम कोशिशें कर चुका हूँ... कोशिश अब भी जारी है। अगर आपके जींस (कपड़ा नहीं) में नहीं है तो इस बुरी आदत से बचिए।


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