Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win

ravi s

Inspirational

3  

ravi s

Inspirational

संस्कारी कौन?

संस्कारी कौन?

7 mins
535



संस्कार शब्द से हम वाक़िफ़ हैं, तुम लोगों ने ज़रूर इस शब्द का इस्तेमाल हज़ारों बार किया होगा और हज़ारों बार तुम्हारे माँ-बाप ने तुम पर भी आज़माया होगा। इसका मतलब क्या है? 'सम' का मतलब 'अच्छा' और 'कर' का मतलब 'कर्म' यानी अच्छे कर्म को संस्कार कहते हैं।


घबरओ मत मेरी प्यारी बहनों, मैं कोई प्रवचन नहीं देने वाली, उसके लिए तो टीवी के गुरु ही काफी हैं! एक्चुअली मुझे भी इस शब्द का एक्चुअल मीनिंग पता नहीं था तो मैंने गूगल किया। मैं तो अब तक यही सोच रही थी कि संस्कार शब्द लड़कियों के लिए है और लड़की के माँ या बाप ही इस्तेमाल कर सकते हैं।


मुझे अपना बचपन याद है जब मेरी माँ मुझसे बहुत परेशान रहती थी। ठीक वैसे ही जैसे मैं अपनी बेटी अंजली से रहती थी और ठीक ऐसे जैसे अंजली अपनी बेटी सुहाना से रहती है। ये संस्कार की बीमारी लगता है पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है! खैर मेरी माँ बहुत परेशान रहती थी कि वह मुझे अच्छे संस्कार दे। उनका मानना था संस्कार एक दारोहर है, और ख़ास तौर से ये दररोहर माँ-बाप बच्चों को देते रहते हैं, यानी माँ-बाप और उनके ख़ानदान की संपत्ति है। यह भी साफ़ था कि इस संपत्ति का बड़ा हिस्सा लड़कियों को ही मिलना चाहिए क्योंकि उनको ही इसकी ख़ास ज़रुरत है।


तो बताओ मैंने क्या ग़लत सोचा अगर मैं अंजली को संस्कार देना चाहती थी तो? एक प्रॉब्लम ज़रूर था और वह भी कोई छोटा-मोटा प्रॉब्लम नहीं। यह तो मालूम था मुझे कि संस्कार देना हर माँ का फ़र्ज़ ही नहीं, धरम भी है। पर मेरे अंदर संस्कार का वह कौन-सा दारोहर है यह मैं कैसे जानूं? वैसे मेरी माँ ने बहुत कुछ सिखाया और मैंने बहुत कुछ सीखा पर क्या यही संस्कार थे?


बहनों ज़रा सोचों। माँ-बाप हमें क्या बोलते थे? अगर लिस्ट बनाओ तो ये थे उनकी सीख:


लड़का बुढ़ापे की लाठी है, बेटी पराया धन।

सिर्फ लड़की की इज़्ज़त लुट सकती है लड़कों का नहीं।

लड़कियाँ कमज़ोर वर्ग की होती हैं और लड़के शक्ति-मान।

लड़कियों तो तमीज से रहना चाइये, लड़कों को नहीं।

लड़के कुछ भी कर सकते हैं लड़कियों को ये छूट नहीं।

लड़कों से कभी प्यार मत करना, लड़के दगा बाज़ होते हैं, तुम्हारा दिल तोड़ेंगे और इज़्ज़त भी नहीं छोड़ेंगे।

प्रेम विवाह पाप है, ज़िंदगी भर पछताओगे।

प्रेम करना है तो जात-पात समझे बिना मत करना।

घर की इज़्ज़त लड़कियों के हाथ में होती है लड़कों के नहीं।

औरत घर की लक्ष्मी है और देश भर में पूजी जाती है।

बस बहनों, ये सैंपल काफी है? बाकी अपने आप जोड़ लेना।


यही सब सीख कर मैं बड़ी हुई और अंजली को यही सब सिखा कर परवरिश करना था मुझे। पर ये जो कमबख्त वक़्त है क्यों बदल जाता है? मेरी माँ का वक्त अलग था जो मेरे वक्त से मेल नहीं खाता था और अंजली का वक्त और है जो मेरे वक्त से मेल नहीं खा रही है! अब वक्त तो हमारे हाथ में नहीं है ना?


मैं दुविधा में थी और मदद मांगने मेरे 'वो' के पास चली गयी। क्या संस्कार देना सिर्फ़ पत्नी का फ़र्ज़ और धरम है, बाप और मर्दों का नहीं? ऐसा सोची मैं, कितनी भोली थी ना?


"सुनिए जी आपने कभी बच्चों के बारे में कुछ सोचा है?"

"बच्चों के बारे में? क्यों कुछ हो गया क्या?"

"अरे, अंजली लड़की है, उसके बारे में बात कर रही हूँ!"

"ये तो उसके पैदा होते ही हमें मालूम था कि अंजली लड़की है, अब क्या हुआ?"

"कुछ तो समझो जी, माँ-बाप होने के नाते हमें उसे कुछ देना नहीं है क्या?"

"बिलकुल सही और हम दे भी रहे हैं, हैं ना। कुछ रह गया क्या? स्पष्ट बोलो।"

"मैं उसकी बात नहीं कर रही हूँ, खाने, कपडे, शिक्षा की, संस्कार की बात कर रही हूँ!"

पति देव को मैंने अपना थ्योरी बताया और वह कुछ देर के लिए चुप हो गए.

"सुनो, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि तुम्हें अंजली की इतना फ़िक्र है। वाह भाई वाह, क्या सोचा।"

"मैंने जो सोचा उसे गोली मारो, तुम क्या सोचते हो यह बताओ."

"अब क्या बोलूं, कुछ बोलूंगा तो बोलोगे की बोलता हूँ और चुप रहने नहीं दोगी। इतना ज़रूर बोलूंगा कि सोच तुम्हारी ग़लत नहीं है, सिर्फ़ विचार पुरानी है। भाग्यवान, वक्त बदल चुका है और हम नहीं बदले, तुम भी और मैं भी।"


"तुम्हारा तो तुम जानो, पर मैं बदल चुकी हूँ। मैं जानती हूँ अंजली नई पीढ़ी की लड़की है और मैं नहीं हूँ। पर वक्त जो भी हो, जो सच्चाई है वह बदलते नहीं।"


"और तुम्हारे विचार में सच्चाई जो हज़ारों साल पुरानी है वह आज भी बदला नहीं?"


अचानक मुझे श्याम की बात याद आ गयी। अरे, वही श्याम जो शीतल को परेशान करता था? अब ये ना कहो तुमने मेरी पहली कहानी नहीं पढ़ी, "यह भी कोई रिश्ता है?"। श्याम कहता था कि कोई ग़लत नहीं है और सब सही हैं। क्या कहा उसने? सदियों पहले लोग पृथ्वी को चपटा समझते थे, फिर पता चला पृथ्वी गोल है। जो चपटा समझते थे वह अपनी जगह सही थे क्योंकि उनके ज़माने में सब यही ठीक समझते थे। क्या हम पुरानी सच्चाइयों को अभी भी सच नहीं मानते?


हाँ कई लोग नहीं मानते और मैं भी अपने जवानी के समय नहीं मानती थी? सोचती थी मेरी माँ के विचार छोटे हैं और वह बदले वक्त को नहीं समझती। पर उनके जाने के बाद पता नहीं क्यों मेरे विचार भी उनके जैसे हो गए? मैं उनकी बातों को सच तो नहीं मानती थी पर इज़्ज़त ज़रूर करती थी और किया वही जो वह चाहती थी। अब मैं भी वही चाहती हूँ अंजली से कि वह मेरी बातों की इज़्ज़त रखे।


"देवी, क्या सोच रहे हो? तुम यही सोच रहे हो ना कि जैसे तुमने अपने माता-पिता की बात मानी अंजली भी ऐसा ही करे? हर माँ-बाप यही चाहते हैं। पर अगर अंजली कुछ अपनी सोच से करना चाहती है तो तुम्हें क्या हर्ज़ है?"


"ये तुम क्या कह रहे हो? वह अलग क्या करना चाहती है? मुझे तो कुछ बताया नहीं।"


"मैंने कब बोला कि वह कुछ सोच रही है? क्या ये तो नहीं कह रही हो कि वह लड़की है इसलिए कुछ अलग सोच नहीं होनी चाहिए?"


"तुम भी ना, मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा।"


"पर डर लगता है कहीं ऐसे कुछ सोच बैठे, है ना?"


"सच बोलूं, मुझे कभी डर ज़रूर लगता है। अगर उसे कुछ हो गया तो?"


"तुम तो संस्कारों की बात कर रहे थे ना और जानना चाहती हो कि मेरे क्या विचार हैं?"


"हाँ, पर मुझे लगता है कि इन बातों पर तुम्हें विश्वास ही नहीं है।"


"गलत। संस्कार क्या है ये तो मैं नहीं समझता क्योंकि इसके डेफिनिशंस हो गए हैं। पर एक आम इंसान के नाते मैं भी समझता हूँ कि ये कुछ मर्यादाएँ है, कुछ सामाजिक दायरे जिनके भीतर हम रहेंगे तो समाज हमें संस्कारी मान लेगा और अगर जैसे ही इस दायरे के बाहर निकलते हैं तो हम बुरे हो जाएंगे।"


"बात तो सही बोल रहे हो तुम, आखिर इंसान सामाजिक प्राणी ही तो है।"


"छोड़ो इन बातों को और बताओ किस बात से तुम्हें डर लग रहा है।"


"अगर अंजली को कुछ हो गया तो किसी को किसी को मुंह कैसे दिखाऊंगी? क्या सोचेंगे लोग? मैं अपनी ही बच्ची को अच्छे संस्कार दे नहीं पाई? तुम्हें याद है सात मेल के शिंदे का किस्सा? उनकी लड़की कितनी सीधी, सुन्दर और सुशील थी? क्या हुआ उसके साथ? लड़के ने उसे धोखा दिया और उसने जान ले ली अपनी। अगर उसके माँ-बाप ठीक वक्त पर उसे ठीक सलाह देते तो उसको बचा सकते थे।"


"तुम्हें याद है ना वह मल्होत्रा के लड़के का किस्सा? माँ-बाप उसे शादी के लिए फाॅर्स कर रहे थे और वह गे था! तो क्या माँ-बाप ने बेटे को अच्छे संस्कार नहीं दिए इसलिये गे निकला? क्या उस लड़के में कुछ कमी है? पढाई में तेज़ है, अच्छी नौकरी मिली उसको और नार्मल इंसानों के तरह ही तो रहता है? बच्चे कैसे निकलेंगे ये संस्कारों पर ही निर्भर होता तो हर बच्चा या बच्ची संस्कारी हो गए होते। मैं शराब पीता हूँ तो मेरे माँ-बाप का क्या दोष? उनहोंने तो हमेशा यही कहा कि शराब-सिगरेट बुरी चीज़ है।"


बात तो सही कह रहा है मेरा 'वो' , पर मेरे अंदर का डर बना हुआ है। हम लोग तो दूसरों की कमियाँ निकलने में एक्सपर्ट हैं, पर अपने पर जब बात आती है तो दोष किसी तीसरे के सर पर दाल देते हैं। माँ-बाप का फ़र्ज़ है बच्चे पैदा करना और उनकी परवरिश ईमानदारी से करना। बाकी उनकी किस्मत है और उनके करम और जो ज़िंदगी वह चुनते हैं वह उनकी रिस्पांसिबिलिटी है, माँ-बाप की नहीं। हम लोग तो खामखा अपना रोल का दायरा बढ़ा लेते हैं और परेशान होते हैं और बच्चों पर भी अपने उम्मीदों का बोझ लाद देते हैं, क्यों बहनों बात ठीक बोली ना मैं? बताओ बताओ, टेल टेल। 








Rate this content
Log in

More hindi story from ravi s

Similar hindi story from Inspirational