niranjan niranjan

Abstract

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याचना

याचना

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दर्द भरी सुबह जो दांतों की किटकिटाहट बंद न होने दे और सुबह की व्यस्तता। सुबह पहले ऑफिस के लिए तैयारी और ऑफिस का वर्क लोड हर व्यक्ति पर रहता है। सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां बत्ती पर जाकर रुक जाती है और वहां व्यक्ति 2 मिनट का आराम महसूस करता है। सर्दी का आलम कुछ भी हो पर जैसे ही गाड़ी रूकती है वैसे ही नंगे पैर तन पर फटे मैले,कुचले लत्ते और आ जाते हैं वह नोनीहाल भीख मांगने।

  न जाने कहां से आते हैं, सर्दी से शायद रूह नहीं कांपती पर इनको देखकर रूह कांप जाती है। सरकार के आंकड़ों से यह बच्चे ना जाने कहां चले जाते हैं।

 आज सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकला तो पहले ही चौराहे पर लाल बत्ती होने की वजह से रुका जैसे ही गाड़ी रुकी वैसे ही रोज की तरह एक बच्चा मुश्किल से 10 साल का प्रतीत हो रहा था गाड़ी के पास आया। मानव की सर्दी का आलम यह था कि गर्म कपड़ों में सर्दी रुकने का नाम नहीं ले रही थी पर वह फरिश्ता ना जाने कहां से आया था, नंगे पैर तन पर फटे कपड़े शायद सर्दी भी उसकी मजबूरी को देखकर हार गई होगी।

 पास आया गाड़ी का शीशा बंद था उसने बंद शीशे से ही पैसे मांगने की याचना की मैंने कुछ भी रिस्पांस नहीं दिया। वह वहीं खड़ा रहा और बंद शीशे पर जमी ओंस बूंद पर ABCD लिखना शुरू कर दिया।जब मैंने यह देखा तो मेरी रूह कांप गई और मैंने शीशा उतारा और उससे बातें शुरू की

  "पढ़ने जाते हो क्या?"

उसने जवाब दिया"साहब समय नहीं मिलता परंतु हमारे झुग्गी के पास एक मैम कुछ बच्चों को पढ़ना आती है कभी कभार मम्मी पापा से छुपकर वहां चला जाता हूं।"

 "आप स्कूल क्यों नहीं जाते"मैंने उससे पुछा

"साहब मम्मी पापा पढ़ने नहीं देते जब हम पढ़ने जाते तो हमारी पिटाई करते हैं क्योंकि जब यहां से ₹10-20 कमाकर ले जाते हैं तो घर का खाना बनता है।"

कितने भाई बहन हो

"तीन बहन और दो भाई हैं"उसे मासूम ने ऐसे जवाब दिया कि ना जाने उसके पास कितना अनुभव था।"

 पापा आपके विद्यालय क्यों नहीं भेजते हैं?

जब बच्चे ने इस प्रश्न का जवाब दिया तो मेरी आंखों से आंसू छलक गए।

"मां बीमार रहती है और पापा को शराब की लत है वह शराब पीकर घर पर ही सोया हुआ रहता है उसको भी कोई बड़ी बीमारी बताई थी डॉक्टर ने"

 जो हम भाई-बहन यहां से कम कर लेकर जाते हैं तो हमारे घर में आता जाता है और मम्मी हमें मुश्किल से खाना बना देती है।

 मैंने पूछा "पढ़ना चाहते हो"

उसे छोटे बच्चों का जवाब था कि सब को नहीं चाहता पढ़ने पर मजबूरियां में कहां पढ़ने देती है।

 मैंने उसके इधर झोपड़ी का पता पूछा इतनी देर में ही हरी बत्ती हो गई सभी गाड़ियां सरपट दौड़ने लगी मैंने उसे बच्चों को ₹10 दिए और चल दिया उसको अपने ख्वाबों में बसाकर।

 इतना मासूम बच्चा की जिसकी मासूमियत से हर व्यक्ति घायल हो जाए बस उसे बच्चे का चेहरा बार-बार आंखों के सामने आ रहा था ना जाने क्यों सरकार की नजरों से यह बच्चे छूट जाते हैं जो पढ़ना चाहते हैं एक अच्छा नागरिक बनना चाहते हैं पर मजबूरी उनको मजबूर कर देती है और सरकार आंकड़ों में गरीबों का मसीहा बन जाती है।


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