संस्कार
संस्कार
जब बालक पैदा होता है तो वह बिल्कुल एक मिट्टी के ढेले के समान होता है परंतु धीरे-धीरे जब वह जीवन के बहुत से चरणों से गुजरता है तो वह जीवन के अनुभव से एक सुंदर घड़े का निर्माण करता है। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए आध्यात्मिक मानसिक शारीरिक विकास का होना बहुत ही जरूरी है। इस सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है संस्कार।
संस्कार उसे बालक को जीवन जीने की कला सिखाता है परंतु बहुत से लोग इसको जानकारी देते हैं कि यह तो सामाजिक बंधन है परंतु मेरा मानना है कि"संस्कार वह पोषक तत्व है जिसके ग्रहण करने से एक स्वस्थ पौधा स्वस्थ फल देता है, संस्कार विहीन खरपतवार के समान होता है।"
यदि हमें एक अच्छे व्यक्ति का विकास करना है तो निश्चित ही हमें सबसे पहले उसे संस्कारवान बनाना होगा। हर समाज हर बालक से यह अपेक्षा रखता है कि वह संस्कारवान बने और समाज देश का समृद्ध विकास करें।
परंतु इस जीवन की बहुत सी कलाएं हैं और हम कहीं ना कहीं संस्कार को एक बेकार की वस्तु मानकर स्वयं को गलत रास्ते की ओर लेकर चल देते हैं और उसके परिणाम फिर गलत आते हैं।
संस्कारी ही तो है हमें हमारे सामाजिक बंधनों से बांधे रखता है संस्कार के बिना व्यक्ति का जीवन नीरस हो जाता है। समाज भी उस व्यक्ति का हासियाकरण कर देते हैं। इसलिए हो सके तो हम भी कोशिश करें कि यदि हम बच्चों को संस्कारवान बनाना चाहते हैं तो पहला कर्तव्य यही होगा कि हम भी कहीं ना कहीं इसकी पलना करें।
संस्कार एक समाज में उपजने वाला तत्व है इसलिए समाज की बहुत सी मान्यताएं ऐसी होती है जो कुरितियों का रूप ले लेती है परंतु हम उन्हें अच्छाई समझकर उनका त्याग नहीं करते हैं और उसे हम अगली पीढ़ी को सौप देते हैं फिर वह अगली पीढ़ी के लिए नासूर बन जाती है।
हमारे मन में कई बार बहुत से सवाल आते हैं कि हमें इन आदर्शो में क्यों घसीटा जा रहा है।
हमें स्वतंत्र क्यों नहीं जीने दिया जा रहा।
यह समाज की मान्यता हमारा गला क्यों घोट रही है।
परंतु समाज की मान्यताएं आपको कष्टदाई जरूर लगेगी परंतु यह आपके जीवन को संवारने का काम करती है जब आपका जीवन संवर जाता है तो निश्चित ही आप समाज की समृद्धि का प्रतीक बनोगे।
बहुत से सामाजिक संगठन धार्मिक संस्थाएं हमें संस्कार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हर धर्म आपको सच्चाई दया प्रेम करुणा दिन की सहायता की शिक्षा देता है और यही शिक्षा हमें संस्कारवान बनती है।यदि हम बात करें धार्मिक पुस्तकों की तो कहीं ना कहीं वह हर जीवन में संस्कार पैदा करने के लिए प्रेरित करती है। हॉट पुस्तकों में एक देवता और राक्षस का वर्णन आपको जरूर मिलता है और उसमें देवता एक संस्कारवान चरित्रवान अभिनेता के रूप में दिखाया जाता है और राक्षस को एक दोस्त के रूप में दिखाया जाता है पूरे जीवन के संघर्ष के बाद अंत में विजय उसे देवता की ही होती है जो अपने पूरे जीवन में संघर्ष कर उसे बुराई से लड़ा।
बहुत सी ऐसी सच्चाई की कहानी और बहुत से क्यों दांती हमारे समाज में मिल जाती है जिनको हम बच्चों के सामने सुनते हैं जिससे बच्चे स्वयं सुनकर और प्रेरित होकर अपने अंदर संस्कार का बीजरोपित करते हैं।
संस्कार किसी पर थोपा गया बाहर नहीं होता संस्कार व्यक्ति के स्वयं की उपज होती है।
